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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे ५८४. वेदग० साददंडओतेउभंगो । सेसं ओधि भंगो । उक्सम ओघि भंगो। णवरि सादा०-जस०-उच्चा० उक्क० वड्डी क० ? अण्ण० सुहुमसंप० उवसाम० चरिमे उक्क० अणु० वट्ट० तस्स उक० वड्डी । एवं सव्वाणं उवसामगाणं सादादीणं पसत्थाणं । सासणे पढमदंडओ सव्वसंकिलिट्ठस्स। साददंडओ सव्वविसुद्धस्स । पुरिसदंडओ तप्पाओ०संकि० । तिणि आऊणि ओघ । सम्मामि० पढमदंडओ उक्क. वड्डी क० ? मिच्छत्ताभिमुह० तस्स उक्क० वड्डी । उ० हा० क० ? सम्मत्ताभिमुह० चरिमसमयबंधगस्स तस्स उक्क. हा० । अवट्ठाणं सहाणे । साददंडओ उक्क० वड्डी क.? सम्मत्ताभिमुह० तस्स उक० वड्डी । उक्कस्सिया हाणी अवठ्ठाणं सत्थाणे । मिच्छादिही० मदि०भंगो।
५८५. असण्णीसु अब्भव०भंगो। णवरि पढमदंडए उक्क० वड्डी क० १ यो तप्पाओग्गजह० संकि० उक०संकिलेसं गदो तदो उक्क० अणु० पबंधो तस्स उक्क० वड्ढी । उ० हाणी अवहाणं सागारक्खएण पडिभग्गो । आहार० ओघ ।
एवं उक्कस्ससामित्तं समत्तं ५८६. जहण्णए पगदं । एत्तो जहण्णपदणिक्खेवसामित्तस्स साधणहूं अट्ठपदभूदसमासलक्खणं वत्तइस्सामो। तं जहा–मिच्छादिट्ठिस्स या अणंतभागफद्दग
५८४. वेदक सम्यक्त्वमें सातावेदनीय दण्डकका भंग पीतलेश्याके समान है। शेष भंग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। उपशमसम्यक्त्वमें अवधिज्ञानी जीवोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि सातावेदनीय, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी की है? जो अन्यतर सूक्ष्मसाम्परायिक उपशामक जीव अन्तिम अनुभागबन्धमें विद्यमान है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। इसी प्रकार सब उपशामकोंके सातावेदनीय आदि प्रशस्त प्रकृतियोंका कहना चाहिए। सासादन सम्यक्त्वमें प्रथम दण्डक सर्वसंक्लिष्टके, सातावेदनीयदण्डक सर्वविशुद्धके और पुरुषवेददण्डक तत्प्रायोग्य संक्लिष्टके कहना चाहिए । तीन आयुका भंग ओघके समान है। सम्यग्मिथ्यात्वमें प्रथम दण्डककी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है? जो मिथ्यात्वके अभिमुख है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो सम्यक्त्वके अभिमुख होकर अन्तिम समयमें बन्ध कर रहा है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। उत्कृष्ट अवस्थान स्वस्थानमें होता है। सातावेदनीयदण्डककी उकृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो सम्यक्त्वके अभिमुख है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उत्कृष्ट हानि और अवस्थान स्वस्थानमें होते हैं । मिथ्याष्टि जीवोंमें मत्यज्ञानी जीवोंके समान भंग है।
५८५. असंज्ञियोंमें अभव्योंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि प्रथम दण्डककी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जिसने तत्प्रायोग्य जवन्य संक्लेशसे उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर उत्कृष्ट अनुभागबन्ध किया है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानि और भवस्थानका स्वामी साकार उपयोगके क्षय होनेसे प्रतिभन्न हुआ जीव होता है। आहारकोंमें ओघके समान भंग है।
इस प्रकार उकृष्ट स्वामित्व समाप्त हुआ । ५८६. जघन्यका प्रकरण है। यहाँ जघन्यपदनिक्षेपके स्वामित्वका साधन करनेके लिए अर्थपदको संक्षेपमें बतलाते हैं । यथा-मिथ्यादृष्टिकी जो अनन्तभागस्पर्द्धकवृद्धि है, संयतकी
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