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________________ ३२६ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे तिरिक्ख०-एइंदि०-हुंड ०-अप्पसत्थव० ४-तिरिक्खाणु ०-उप०-थावर०-अथिरादिपंचणीचा०-पंचंत० उक्कस्सिया वड्डी कस्स ? अण्णदरस्स यो चदुट्ठाणिययवमज्झस्स उवरि अंतोकोडाकोडिहिदिवंधमाणो अंतोमुहुत्तं अणंतगुणाए सेढीए वड्डिदण उक्कस्ससंकिलेसेण उकस्सदाहं गदो तदो उक्कस्सयं अणुभागबंधो तस्स । उक्कसिया हाणी कस्स ? यो उकस्सयं अणुभागं बंधमाणो मदो एइंदियो जादो तदो तप्पाओग्गजहण्णए पडिदो तस्स उक्कस्सिया हाणी । उक्कस्सयमवहाणं कस्स ? यो उक्कसगं अणुभागं बंधमाणो सागारक्खएण पडिभग्गो तप्पाओग्गजहण्णए पडिदो तस्स उक्कस्सगमवहाणं । एवं हस्स-रदीणं । णवरि तप्पाऑग्गसंकिलिट्ठो त्ति भाणिदव्वा । साद०-जस०-उच्चा० उक्क० वड्डी० कस्स० ? अण्ण० खवगस्स सुहुमसं० चरिमे उक्कस्सगे अणुभागबंधे वट्टमाणगस्स तस्स उक्क० वड्डी । उक० हाणी कस्स ? यो उवसामयो से काले अकसाई होहिदि त्ति मदो देवो जादो तप्पाऑग्गजहण्णए पदिदो तस्स उक्क० हाणी। उक्क० अवठ्ठाणं कस्स ? अण्ण० अप्पमत्तसंजदस्स अक्खवग-अणुवसमगस्स सव्वविसुद्धस्स अणंतदुगुणेण वड्डिदूण अवहिदस्स उक्कस्समवहाणं । इत्थि०-पुरिस०-तिण्णिजादि-चदुसंठा०-चदुसंघ०-सुहुम-अपज०-साधार० उक्क० वड्डी क० ? अण्ण० यो चदुहाव्यव० उवरिं अंतोकोडाकोडिहिदि बंधगाणो अंतोमुहुत्तं अणंतगुणाए सेढीए वड्डिदूण तदो तप्पाओग्गवेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान, अप्रशस्त वणेचतुष्क, तियश्चगत्यानुपूर्वी, उपघात, स्थावर, अस्थिर आदि पाँच, नीच गोत्र और पाँच अन्तरायको उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? चतुःस्थानिक यवमध्यके ऊपर अन्तःकोड़ाकोड़ी स्थितिका बन्ध करनेवाला जो जीव अन्तर्मुहूर्त काल तक अनन्तगुणी श्रेणिरूपसे वृद्धिको प्राप्त होकर उत्कृष्ट संक्लेशके द्वारा उत्कृष्ट दाहको प्राप्त हुआ है और तब उकृष्ट अनुभागबन्ध किया है, ऐसा अन्यतर जीव उक्त प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट दृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जो जीव मरकर एकेन्द्रिय हो गया और वहाँ तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागवन्धको प्राप्त हुआ वह उक्त प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट हानिका स्वामीहै । उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जो अन्यतर जीव साकार उपयोगसे निवृत्त होकर तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागबन्ध करने लगा है वह उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। इसी प्रकार हास्य और रतिका स्वामित्व कहना चाहिए । इतनी विशेषता है कि यहाँ तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट ऐसा कहना चाहिए। सातावेदनीय, यश-कीर्ति और उञ्चगोत्रको उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर क्षपक सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानके अन्तमें उत्कृष्ट अनुभागबन्ध कर रहा है वह उक्त प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो उपशामक अनन्तर समयमें अकषायी होगा कि इसी बीच मर कर देव हो गया और तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागबन्ध करने लगा वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? अक्षपक और अनुपशामक अन्यतर जो अप्रमत्तसंयत सर्वविशुद्धि जीव अनन्तगुणी वृद्धि के साथ अवस्थित है वह उक्त प्रकतियोंके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, तीन जाति, चार संस्थान, चार संहनन, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो चतुःस्थानिक यवमध्यके ऊपर अन्तःकोड़ाकोड़ी स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव अन्तर्मुहूर्त काल तक अनन्तगुणी श्रेणिरूपसे १. ता० आ० प्रत्योः अप्पसत्थवि० ४ तिरिक्खाणु० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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