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पदणिक्खेवे सामित्तं
आहार - २ मणुसि० भंगो । सेसाणं आणदभंगो ।
५६२. अब्भवसि० मदि० भंगो | णवरि मिच्छ० अवत्त० णत्थि । एवं मिच्छा०अणि ति । सासण० - सम्मामि० देवभंगो । णवरि अप्पप्पणो धुवपगदीओ परियत्तियाओ च णादव्वाओ भवंति । सण्णी० मण०भंगो | एवं अप्पाबहुगं समत्तं । एवं भुजगारबंधो समतो पदणिक्खेवो समुक्कित्तणा
५६३. एत्तो पदणिक्खेवे त्ति तत्थ इमाणि तिण्णि अणियोगद्दाराणि । तं जहासमुत्तिणा सामित्तं अप्पाबहुगे त्ति । समुक्कित्तणा दुविधा - जह० उक्क० । उक्क० पदं । दुवि० - ओघे० आदे० | ओघे० सव्वपगदीणं अत्थि उकस्सिया वड्डी उक० हाणी उक्कस्सगमवद्वाणं । एवं याव अणाहारए त्ति णेदव्वं । णवरि अवगद ० -सुहुमसंप० अत्थि उक्क० वड्ढी उक० हाणी । एवं जहण्णगं पि ।
एवं समुत्तिणा समत्ता सामित्तं
५६४. सामित्तं दुवि०. [० जह० – उक्क० । उक्क० पगदं पंचणा०-णवदंस० - असाद० - मिच्छ० सोलसक०
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। दुवि० - ओघे० आदे० । स ० - अरदि- सोग - भय-दु०
ओषे०
जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे भुजगारपदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। दो आयु और आहारकद्विकका भङ्ग मनुष्यिनियोंके समान है । शेष प्रकृतियोंका भंग आनतकल्पके समान है । ५६२. अभव्यों में मत्यज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वका अवक्तव्यपद नहीं है । इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंके जानना चाहिए। सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में देवोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि अपनीअपनी ध्रुवप्रकृतियाँ और परिवर्तमान प्रकृतियाँ जाननी चाहिए। संज्ञी जीवोंमें मनोयोगी जीवोंके समान भङ्ग है ।
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इस प्रकार अल्पबहुत्व समाप्त हुआ । इस प्रकार भुजगारबन्ध समाप्त हुआ ।
पदनिक्षेप समुत्कीर्तना
५६३. आगे पदनिक्षेपका प्रकरण है । उसमें ये तीन अनुयोगद्वार होते हैं। यथासमुत्कीर्तना, स्वामित्व और अल्पबहुत्व । समुत्कीर्तना दो प्रकारकी है - जघन्य और उत्कृष्ट | उष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट वृद्धि, उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अपगतवेदी और सूक्ष्मसाम्परायिक संयत जीवोंमें उत्कृष्ट वृद्धि और उत्कृष्ट हानि है । इसी प्रकार जघन्य समुत्कीर्तना जानना चाहिए ।
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इस प्रकार समुत्कीर्तना समाप्त हुई ।
स्वामित्व
५६४. स्वामित्व दो प्रकारका है— जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असाता
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