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महायचे अणुभागवाहियारे ५४३. णिरएसु तित्थ० ओषं । अथवा अवत्त० ज० ए०, उ० पलिदो. असंखे । सेसाणं भुज०-अप्प० णत्थि अंतरं । अवढि० ज० ए०, उ० असंखेंजा लोगा।
प्रमाण है, इसलिये इनके अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण कहा है। उपशमसम्यक्त्वमार्गणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सात दिन-रात है। तदनुसार सम्यक्त्वसे च्युत होकर मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले जीवोंका भी इतना ही अन्तर है। अतः स्त्यानगृद्धि तीन आदिके अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर सात दिन-रात कहा है। सातावेदनीय आदिके चारों पदोंका एकेन्द्रिय आदि जीव बन्ध करते हैं, अतः इनके चारों पदोंके अन्तरकालका निषेध किया है। अप्रत्याख्यानावरण चार और प्रत्याख्यानावरण चारके तीन पदोंके अन्तरका निषेध ज्ञानावरणके समान जानना चाहिये । तथा प्रथमोपशमसम्यक्त्वके साथ संयतासंयत गुणस्थानका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चौदह दिन-रात है। तदनुसार पाँचवें आदि ऊपरके गुणस्थानोंसे च्युत होकर जीव इतने ही काल तक अविरत अवस्थाको नहीं प्राप्त होता। अतः अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर चौदह दिनरातप्रमाण कहा है। इसी प्रकार उपशमसम्यक्त्वके साथ विरत जीवका जघन्य भन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पन्द्रह दिनरात है। इसका अभिप्राय इतना है कि विरत जीव इतने ही काल तक विरताविरत गुणस्थानको नहीं प्राप्त होता, इसलिए प्रत्याख्यानावरणके अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पन्द्रह दिन-रात है। नरक, मनुष्य और देवगतिमें यदि कोई भी जीव उत्पन्न न हो तो कमसे कम एक समय तक और अधिक से अधिक चौबीस मुहूर्त तक नहीं उत्पन्न होता । इसके अनुसार इन आयुओंके बन्धमें भी इतना अन्तर पड़ सकता है, इसलिए इन तीन आयुओंके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर चौबीस मुहूर्त कहा है । मात्र इनके अवस्थितपदका परिणामोंके अनुसार अन्तर होता है, इसलिए वह जघन्यरूपसे एक समय और उत्कृष्टरूपसे असंख्यात लोकप्रमाण कहा है। वैक्रियिकषट्कके भुजगार और अल्पतरपदका बन्ध नाना जीव करते ही रहते हैं, इसलिए इनके उक्त दो पदोंके अन्तरकालका निषेध किया है। इसी प्रकार तीर्थङ्कर और औदारिकशरीरके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदके अन्तरकालका निषेध घटित कर लेना चाहिए । तथा वैक्रियिकषटकके अवस्थितपदके अन्तरकालको तीन आयुओंके समान घटित कर लेना चाहिए । वैक्रियिकपटक और औदारिकशरीर परिवर्तमान प्रकृतियाँ हैं, इसलिए इनके अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त कहा है। तथा तीर्थङ्कर प्रकृतिका भवक्तव्यपद उपशमश्रेणिमें व दूसरे-तीसरे नरकमें होता है। उसमें भी उपशमश्रेणिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्सप्रमाण है, इसलिए इसके अवकव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण कहा है। यहाँ गिनाई गई काययोगी आदि मार्गणाओंमें यह प्ररूपणा अविकल घटित हो जाती है, इसलिए उनके कथनको भोषके समान कहा है।
५४३. नारकियोंमें तीर्थदर प्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। अथवा अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। शेष प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। अवस्थितपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है।
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