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________________ भुजगारवंचे अंतरं ३१३ गिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणु०४ तिण्णिप० णत्थि अंतरं । अवत्त० ज० ए०, उ० सत्त रादिदियाणि । सादासाद०-सत्तणोक०-तिरिक्खाउ०-दोगदि-पंचजा०-छसंठा०ओरालि अंगो०-छस्संघ०-दोआणु०-पर०-उस्सा०-आदाउजो०-दोविहा०-तसादिदसयु०. दोगो० चत्तारिप णत्थि अंतरं । अपञ्चक्खाण०४ तिण्णिप० णत्थि अंतरं । अवत्त० ज० ए०, उ० चॉइस रादिदियाणि । एवं पचक्खाण०४ । णवरि अवत्त० ज० ए०, उ० पण्णारस रादिदि० । तिण्णिआउ० भुज०-अप्प०-अवत्त० ज० ए०, उ० चदुवीर्स मुहुत्तं । अवढि० ज० ए०, उ० असंखेंजा लोगा। वेउ०छ० भुज-अप्प० णत्थि अंतरं । अवढि० ज० ए०, उ० असंखेंजा लोगा। अवत्त० ज० ए०, उ० अंतो० । एवं आहार०२। तित्थ० भुज०-अप्प०-अवढि० देवगदिभंगो। अवत्त० ज० ए०, उ. वासपुधत्तं । ओरालि० अवत्त० ज० ए०, उ० अंतो० । सेसपदाणं णत्थि अंतरं । एवं ओघभंगो कायजोगि-ओरा०-णस०-कोधादि०४-अचक्खु०-भवसि०-आहारए त्ति । जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर काल वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सात दिन रात है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, सात नोकषाय, तिर्यञ्चायु, दो गति, पाँच जाति, छह संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, सादि दस युगल और दो गोत्रके चारों पदोंके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चौदह दिन रात है। इसी प्रकार प्रत्याख्यानावरणचतुष्कके विषयमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पन्द्रह दिन रात है। तीन आयुओंके भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चौबीस मुहूर्त है। अवस्थितपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। वैक्रियिकषट्कके भुजगार और अल्पतर पदके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। अवस्थितपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमहत है। इसी प्रकार आहारकद्विकके विषय में जानना चाहिये। तीर्थङ्कर प्रकतिके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदका भङ्ग देवगतिके समान है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। औदारिकशरीरके अपक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। इसी प्रकार ओघके समान काययोगी, औदारिककाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिये। विशेषार्थ-प्रथम दण्डकमें और दूसरे दण्डकमें कही गई प्रकृतियोंके वीन पदोंका निरन्तर बन्ध एकेन्द्रियादि जीवोंके पाया जाता है, इसलिये इन पदोंके अन्तर कालका निषेध किया है। मात्र उपशमश्रेणिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वJain Education Internation 80 www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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