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________________ २९५ भुजगारबंधे फोसणं ५२१. पंचिंदि०-तस०२ पंचणा-छदंस०-अट्ठक०-भय-दु०-तेजा०-क०-वण्ण०४अगु०४-पज०-पत्ते-णिमि०-पंचंत० तिण्णिप० अट्ठ० सव्वलो। अवत्त० खेत्त० । थीणगि०३-अणंताणु०४-णस०-तिरिक्ख०-एइंदि०-हुंड-तिरिक्खाणु०थावर०-दूभग०-अणादें-णीचा० तिण्णिप० लो० असं० अढ० सव्वलो० । अवत्त. अट्ट० । सादासाद०-चदुणोक०-थिराथिर-सुभासुभ० चत्तारिप० अट्ठ० सव्वलो । [मिच्छत्त० तिण्णिपदा० अट्ठचों सव्वलो । ] अवत्त० अट्ठ-बारह० । अपच्चक्खाण०४ तिण्णिप० अढ० सव्वलो० । अवत्त० छच्चों । इथि०-पुरिस-पंचिं-पंचसंठा'-ओरा अंगो०-चदुस्संघ०-दोविहा०-तस-सुभग-दोसर०-आदें तिण्णिप० अहबारह । अवत्त० अहचों । णिरय-देवाउ०२-तिण्णिजा-आहार०२ सव्वपदा खेत्तं । के तीन पद ऊपर बादर एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्भातके समय सम्भव होनेसे यह स्पर्शन कुछ कम सात बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। किन्तु बादरका अवक्तव्यपद ऐसे समयमें सम्भव नहीं है, इसलिए इस अपेक्षासे स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। अयशःकीर्तिके तीन पद उक्त जीवोंके सब अवस्थाओंमें सम्भव हैं, इसलिए इसके तीन पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण कहा है। पर इसके अवक्तव्यपदका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही है । हाँ, ये जीव जब ऊपर बादर एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्बात करते हैं, तब भी इसका अवक्तव्यपद सम्भव है, इसलिए इस अपेक्षासे इसका भी स्पर्शन कुछ कम सात बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। ५२१. पञ्चेन्द्रियद्विक और त्रसद्विक जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, आठ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, पर्याप्त, प्रत्येक, निर्माण और पाँच अन्तरायके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है। स्त्यानगृद्धि तीन, अनन्तानुबन्धी चार, नपुंसकवेद, तिर्यञ्चगति, एकन्द्रियजाति, हुण्ड संस्थान, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, स्थावर, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, चार नोकषाय, स्थिर, अस्थिर, शुभ और अशभके चार पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मिथ्यात्वके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अप्रत्याख्यानावरण चारके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण क्षेत्र का स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजु प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, पञ्चेन्द्रियजाति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वर और आदेयके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नरकायु, देवायु, तीन जाति और आहारकद्विकके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके १. आ० प्रतौ पुरिस० पंच० पंचसंठा० इति पाठः। २. आ० प्रतौ अवत्त० णिरयदेवाउइति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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