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भुजगारबंधे फोसणं
२९३ सव्वलो० । अवत्त० खेत्त । सादादिदंडओ मिच्छत्तदंडओ पंधि०तिरि०भंगो । इत्थि०पुरि०-चदुआउ०-तिगदि-चदुजा०-वेउ०-आहार०-पंचसंठा०-तिण्णिअंगो०-छस्संघ-तिण्णिआणु०-आदाव०-दोविहा०-तस-सुभग-दोसर०-आर्दै-तित्थ० उच्चा० चत्तारिप० खेत्तभंगो। उजो०-जस० चत्तारिप० बादर० तिण्णिप० सत्तचों । अवत्त० खेतभंगो। __ ५१९. देवेसु धुविगाणं तिण्णिप० अह-णव० । थीणिगिद्धि०३-अणंताण०४णस०-तिरिक्ख०-एइंदि०-हुंड-तिरिक्खाणु०-थावर०-दूभग०-अणादें-णीचा० तिण्णिप० अह-णव० । अवत्त० अट्ठचों । सादासाद-मिच्छ०-चदुणोकसाय-उज्जो०-थिरादितिण्णियु० सव्वप० अट्ठ-णव० । इत्थि०-पुरिस०-दोआउ०-मणुसग०-पंचिं०-पंचसंठा०वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, दुर्भग, अनादेय, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। सातावेदनीय आदि दण्डक और मिथ्यात्वदण्डकका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चोंके समान है। सीवेद, पुरुषवेद, चार आयु, तीन गति, चार जाति, वैकियिकशरीर, आहारकशरीर, पाँच संस्थान, तीन आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, तीन आनुपूर्वी, आतप, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वर, आदेय, तीर्थङ्कर और उच्चगोत्रके चार पदोंके बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। उद्योत और यश कीतिके चार पदोंके तथा बादरके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है।
विशेषार्थ-मनुष्यत्रिकमें लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण स्पर्शन है। इनके पाँच ज्ञानावरणादिके तीन पदोंकी अपेक्षा यह स्पर्शन बन जानेसे यह उक्तप्रमाण कहा है। पर यहाँ इनका अवक्तव्य पद सब लोकप्रमाण स्पशनक समय सम्भव नहीं है, इसलिए इस अपेक्षासे स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। कारणका विचार कर कथन कर लेना चाहिए । सातावेदनीयदण्डक और मिथ्यात्वदण्डकका भङ्ग पश्चेन्द्रिय तिर्यश्चोंके समान है, यह स्पष्ट ही है । यहाँ सातादण्डकसे सातावेदनीय, असातावेदनीय, हास्य, रति, अरति, शोक, स्थिर, अस्थिर, शुभ और अशुभका तथा मिथ्यात्वदण्डकसे मिथ्यात्व और अयशःकीतिका ग्रहण होता है। इनमें
वेद आदिके चारों पद यथायोग्य लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण स्पर्शनके समय ही होते हैं, इसलिए यह स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। ऊपर बादर एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते समय भी इनके उद्योत और यशःकीर्तिके चार पद और बादरके तीन पद सम्भव हैं, अतः यहाँ इन प्रकृतियोंके उक्त पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम सात बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। पर ऐसी अवस्थामें बादर प्रकृतिका अवक्तव्यपद नहीं होता, अतः इस अपेक्षासे स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है।
५१९. देवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानगृद्धि तीन, अनन्तानुबन्धी चार, नपुंसकवेद, तिर्यश्चगति, एकेन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, स्थावर, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्र के तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय, असाता
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