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महाबंधे अणुभागवाहियारे जोस अंगो०-स्संघड०--दोआणु०-पर०--उस्सा०-आदाउज्जो०--दोविहा०--तसादिदसयु०-दोगो० चत्तारिप० के ? सव्वलोगे। तिण्णिआउ०-वेउव्वियछ०-आहार०२तित्थ० सव्वप० के० ? लो० असंखें । एवं ओघभंगो कायजोगि-ओरालि०-ओरा० मि०--कम्म०--णदुंस०--कोधादि०४-मदि०-सुद०--असंज०--अचक्खु०--तिएिणले०-- भवसि०-अब्भवसि०-मिच्छा० असएिण-आहार०-अणाहारए नि ।
____५११. एइंदि०-सव्वसुहुमएइंदि० धुक्गिाणं तिएिणपदा सव्वलो०। मणुसाउ० ओघं । सेसाणं सव्वपगदीणं सव्वपदा के ? सव्वलो० । एवं पुढ०--आउ०--तेउ०वाउ०--वणप्फदि०--णिगोद० तेसिं सव्वसुहुमाणं च । बादरएइंदिपज्ज०--अपज्ज० धुवियाणं तिएिणप० के ? सव्वलो० । सादासाद०--चदुणोक०--थिरादिदोषिणयु. सव्वप० के ? सव्वलो० । इत्थि०-पुरि०-तिरिक्खाउ०-चदुजा०-पंचसंठा०-ओरालि. अंगो०--छस्संघ०-आदा०--उज्जो०--दोविहा०--तस०-बादर०--सुभग० दोसर०-आदेंजस० चत्तारिप० के ? लो० संखें । णस०-एइंदि०-हुंड-पर०-उस्सा०-थावरसुहुम-पज्जत्तापज्ज०-पत्ते०-साधा०-दूभग-अणादें-अजस तिषिणप० के ? सव्वलो। अवत्त० के० ? लो० संखेज्ज० । मणुसाउ०-मणुसग०३ चत्तारिप० के १ लो० असातावेदनीय, सात नोकषाय, तिर्यञ्चायु, दो गति, पाँच जाति, छह संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो भानुपूर्वी, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, त्रसादि दस युगल और दो गोत्रके चार पदोंके बन्धक जीवों का कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है। तीन आयु, वैक्रियिक छह, आहारकद्विक और तीर्थङ्करके सब पदोंके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। इसी प्रकार ओघके समान काययोगी, औदारिककाययोगी,
औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्याष्टि, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए।
५११, एकेन्द्रिय और सब सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंमें ध्रवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है। मनुष्यायुका भङ्ग पोषके समान है। शेष सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है। इसी प्रकार पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, निगोद और इन सबके सब सूक्ष्म जीवोंमें जानना चाहिए। बादर एकेन्द्रिय तथा उनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवों में ध्रववन्धवाली प्रक्रतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, चार नोकषाय और स्थिर आदि दो युगलों के सब पदोंके बन्धक जीवों का कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, तिर्यञ्चायु, चार जाति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, त्रस, बादर, सुभग, दोस्वर, आदेय और यशःकीर्तिके चार पदोंके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके संख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र है। नपुंसकवेद, एकेन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान, परघात, उच्छ्वास, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, दुर्भग, अनादेय, और अयश:कीर्तिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। मनुष्यायु और मनुष्यगति
१. ता. प्रतौ छस्संघ० दोश्रावु० दोविहा० इति पाठः। २. पा. प्रतौ सादा० इति पाठः ।
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