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________________ भुजगारपंधे पाणाजीवेहि भंगविषयाणुगमो २७० म। सिया एदे य अवहिदगा य । सेसाणं सव्वपगदीणं धुविगभंगो । णवरि भवहि-प्रवत्त० भयणिज्जा । दोण्हं आऊणं सव्वपदा भयणिज्जा । एवं सव्वणिरयसव्वपंचिंदियतिरि०-देव-विगलिंदि० --पंचिं०-तस० अपज्ज०--चादरपुढ०-आउ०--तेउ०वाउ०--बादरवण पत्ते०पज्जत्त--उँ०-इत्थि०--पुरिस०-विभंग०--सामाइ०-छेदो०-परिहार०-संजदासंज०-तेउ०-पम्म०-वेदगसम्मादिहि ति । ४६४. तिरिक्खेमु धुविगाणं भुज०-अप्प०-अवहिणिय० अत्यि । सेसाणं ओघ । एवं ओरालियमि०--कम्मइ०--णस०-कोधादि०४-मदि०-मुद असंज०तिएिणले०-अब्भव०-मिच्छा०-असएिण-अणाहारगति । णवरि ओरालियमि०-कम्मइ०अणाहार० देवगदिपंचग० सव्वपदा भयणिज्जा। ४६५. मणुसेमु सबपगदीणं भुज०-अप्पणिय० अत्थि । सेसपदा भयणिज्जा। चदुआउ० सव्वपदा भयणिज्जा। एवं सव्वमणुसाणं पंचिं-तस०२-पंचमण-पंचवचि०आभिणि-सुद०-ओधि०-मणपज्ज०-संज०-चक्खु०-ओधिदं०-सुक्कले०-सम्मा०--खइग०सएिण ति । ४६६. मणुसअपजसव्वपगदीणं सव्वपदा भयणिज्जा । एवं वेव्वियमि०आहार०-आहारमि०-अवगद-सुहुमसं०-उवसस०-सासण-सम्मामि० । नियमसे हैं। कदाचित् ये अनेक जीव हैं और एक अवस्थितपदका बन्धक जीव है। कदाचित् ये अनेक जीव हैं और अनेक अवस्थितपदके बन्धक जीव हैं। शेष सब प्रकृतियोंका भंग ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि अवस्थित और वक्तव्यपद भजनीय हैं । दोनों आयुओंके सष पद भजनीय हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब पश्चन्द्रियतिर्यश्च, देव, विकलेन्द्रिय, पञ्चन्द्रिय अपर्याप्त, त्रसअपर्याप्त, बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त, बादर वायुकायिक पर्याप्त, बादर बनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त, वैक्रियिककाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभंगज्ञानी, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, संयत्तासंयत, पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए । ४६४.तिर्यश्चोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदके बन्धक जीव नियमसे हैं। शेष प्रकृतियोंका भंग अोधके समान है। इसी प्रकार औदारिकमिश्रकाययोगी, कामणकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, तीन लेश्यावाले, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें देवगतिपञ्चकके सब पद भजनीय हैं। ४६५. मनुष्योंमें सब प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतरपदके बन्धक जीव नियमसे हैं । शेष पद भजनीय हैं। चारों आयुओंके सब पद भजनीय हैं। इसी प्रकार सब मनुष्य, पञ्चोन्द्रिय, पश्चोन्द्रियपर्याप्त, प्रसद्विक, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, श्राभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनापर्ययज्ञानी, संयत, चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिए। ४६६. मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके सब पद भजनीय हैं। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, श्राहारककाययोगी, आहारकमिश्नकाययोगी, अपगतवेदी, सूक्ष्मसाम्परायसंयत, उपशम १. ता. प्रतौ पज्जत्तावे (व) इति पाठः । २. प्रा. प्रतो सबमणुसाणं पंचिं पंचिं इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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