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________________ भुजगारबंधे अंतराणुगमो उ० 7 सुस्सर-आदें - उच्चा० भुज० - अप्प ० - अवडि० णाणा० भंगो । अवत्त० ज० अंतो०, पणवणं पलि० सू० । णिरयाउ० सव्वपदा मणुसभंगो । दोआउ० तिष्णिप० ज० ए०, अवत्त • ज० तो ० उ० कायहिदी० । देवाड० भुज० अप्प० -[ अवडि] ज० ए०, अवत्त० ज० अंतो०, उ० अट्ठावण्णं पलि० पुव्वकोडिपुधत्ते ० । अवद्वि० कायद्विदी० । वेडव्वियछ० - तिणिजा ० - सुहुम० - अपज्ज० - साधार० भुज० - अप्प ० [ अवधि० ] ज० ए०, अवत्त० ज० तो ० उ० पणवण्णं पलि० सादि० । अवहि० काय हिदी० । मणुस ०ओरा ० - श्रोरा० अंगो ० वज्जरि०-- मणुसाणु० भुज० अप्प० ज० ए०, उ० तिष्णिपलि० दे० | अवद्वि० णाणा० भंगो । अवत० ज० अंतो०, उ० पणवण्णं पलि० दे० । णवरि ओरालि० ० अवत्त ० [३०] पणवण्णं पलि० सादि० | आहारदुगं सव्वपदा ज० ए०, अवत ज० तो ०, ० कायद्वि० । पर०-उस्सा ० - बादर - पज्जत - पत्ते तिष्णिपदा० णाणी०भंगो । अवत्त० ज० अंतो० उ० पणवण्णं पलि० सादि० । तित्थ० भुज ० - अप्प० उ० तो ० । अवद्वि० ज० ए०, उ० पुव्वकोडी दे० । अवत्त० णत्थि अंतरं । ४७३. पुरिसेसु पढमदंडओ पंचणाणावरणादी विदियदंडओ थीणगिद्धिआदी " ज० ए०, सुस्वर, आदेय और उच्चगांत्रके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदका भङ्ग ज्ञानावरण के समान है । अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचपन पल्य है । नरकायुके सब पदोंका भङ्ग मनुष्यों के समान है । दो आयुके तीन पदका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और सब पदोंका उत्कृष्ट अन्तर कार्यस्थितिप्रमाण है । देवायुके भुजगार अल्पतर और अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उक्त पदोंका उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक अट्ठावन पल्य है । तथा अवस्थितपदका अन्तर कायस्थितिप्रमाण है । वैक्रियिक छह, तीन जाति, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणके भुजगार अल्पतर और अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय हैं, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और तीनका उत्कृष्ट अन्तर साधिक पचपन पल्य है तथा अवस्थितपदका उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिकमांगोपांग, वज्रर्षभनाराचसंहनन और मनुष्यगत्यानुपूर्वीके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है । अवस्थितपदका भंग ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त हैं और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचपन पल्य है । इतनी विशेषता है कि औदारिकशरीर. अवक्तव्य पदका उत्कृष्ट अन्तर सांधिक पचपन पल्य है । आहारकद्विकके सब पदों का जघन्य अन्तर एक समय है, श्रवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर काय स्थितिप्रमाण है । परघात, उच्छ्वास, बादर, पर्याप्त और प्रत्येक के तीन पदोंका भंग ज्ञानावरण के समान है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त हैं और उत्कृष्ट अन्तर साधिक पचपन पल्य है | तीर्थङ्कर प्रकृति भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है । वक्तव्यपदका अन्तर काल नहीं है । ४७३. पुरुषवेदी जीवों में पाँच ज्ञानावरणादि प्रथम दण्डक, स्त्यानगृद्धि आदि द्वितीय १. ता० प्रा० प्रत्योः तिथिपलि० व्याया० इति पाठः । Jain Education International સદ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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