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________________ २५७ भुजगारबंधे अंतराणुगमो णाणाभंगो। अवत्त० ज० उ० अंतो० । दोबाउ०-वेउव्वियछ०-आहारदुग-तित्थ. मणजोगिभंगो। तिरिक्खाउ० भुज०-अप्प० ज० ए०, अवत्त० ज० अंतो०, उ० बावीसं वाससह. सादि० । अवहि० ज० ए०, उ० असंखेंज्जा लोगा। मणुसाउ०. मणुसगदि--मणुसाणु०--उच्चा० सव्वपदाणं ओघं । तिरिक्व०-तिरिक्वाणु०--णीचा० भुज०-अप्प० ज० ए०, उ० अंतो० । अवहि-अवत्त० ओघं ।। ४६६. ओरालि. णाणोवरणादिदंडओ कायजोगिभंगो। णवरि अवहि० ज० ए०, उ० बावीसं वाससह० देस'। सादासाद०-सत्तणोक०-दोगदि-पंचजादि-छस्संहाण ओरालि०अंगो०- छस्संघ०-दोआणु०-पर०-उस्सा०-आदाउ०-दोविहा०-तसथावरादि दसयुग०-दोगो० भुज०-अप्प० ज० ए०, उ० अंतो० । अवहि० णाणा भंगो । अवत्त० ज० उ. अंतो० । दोआउ०-वेउव्वियछ०-आहारदुग-तित्थ० मणजोगिभंगो । दोआउ० भुज०-अप्प०-अवहि० ज० ए०, अवत्त० ज० अंतो०, उ० सव्वपदाणं सत्तवाससह० सादि। ४७०. ओरालियमि० धुवियाणं देवगदिपंचगस्स च तिण्णिप० ज० ए०, उ. अंतो०। सेसाणं तिण्णिप० ज० ए०, उ. अंतो० । अवत्त० ज० उ० अंतो० । के समान है। श्रवक्तव्यपदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । दो आयु, वैक्रियिक छह, आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग मनोयोगी जीवोंके समान है। तिर्यञ्चायुके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और तीनोंका उत्कृष्ट अन्तर साधिक बाईस हजार वर्ष है। अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। मनुष्यायु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके सब पदोंका भङ्ग ओघके समान है। तिर्यञ्चगति, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थित और अवक्तव्यपदका भङ्ग ओघके समान है। ४६६. औदारिककाययोगी जीवोंमें ज्ञानावरणादिदण्डकका भङ्ग काययोगी जीवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम बाईस हजार वर्ष है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, सात नोकषाय, दो गति, पाँच जाति, छह संस्थान, औदारिक अांगोपांग, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, परघात, उच्छवास, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, स-स्थावरादि दस युगल और दो गोत्रके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्यपदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। दो अायु, वैक्रियिक छह, आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग मनोयोगी जीवोंके समान है। दो आयुओंके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है, श्रवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और सब पदोंका उत्कृष्ट अन्तर साधिक सात हजार वर्ष है। ४७०. औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियों और देवगतिपश्चकके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूते है। शेष प्रकृतियोंके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। तथा अवक्तव्यपदका १. ता. श्रा. प्रत्योः देसू० इति स्थाने सादि० इति पाठः । ३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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