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________________ अप्पाबहुगपरूषणा २२९ भोगतरा० तिण्णि वि तुल्ला० अणंतगु० । प्रोधिणा०-ओघिदं०-लाभंतरा० तिण्णि वि तुल्ला० अणंतगु० । मणपज्ज०-थीणगिदि०-दाणंतरा० तिण्णि वि तुल्ला० अणंतगु० । णवूस० अणंत० । अरदि० अणंत० । सोग० अणंत० । भय० [ अणंत०] । दुगु. अयंत० । णिशाणिद्दा० अणंत०। पचलापचला० अणंत० । णिद्दा० अणंत। पयला. अतः। अजस०-णीचा. दो वि तु० अणंत०। णिरयग० अणंत । तिरिक्ख. अणंतः । इत्थि० अणंत । पुरिस० अणंत० । रदि० अणंत । हस्स० अणंत० । देवाउ० अर्णत० । णिरया० अणंत० । मणुसाउ० अणंत० । तिरिक्खाउ० अणंत० । एवं भोघभंगो पंचिं०--तस०२-पंचमण--पंचवचि०--काययोगि०--इत्थि०--पुरिस०णस०--अवगद०-कोषादि०४-मदि०-मुद०-विभंग०-असंज०--चक्खु०-अचक्खु०तिण्णिले०-भवसि०-अब्भवसि०-मिच्छा०-सण्णि-आहारए ति । ४३७. णिरयगदीए सव्वतिव्वाणुभागं सादा० । जस०-उच्चा० अणंतगु० । मणुस० अणंत० । कम्म० अणंत । तेज० अणंत० । ओरालि० अणंत० । मिच्छ० अणंत० । केवलणा०-केवलदं०-सादा०-विरियंत. चत्तारि वि तुला० अणंतगु० । चक्षुदर्शनावरणका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे श्रुतज्ञानावरण, अचक्षुदर्शनावरण और भोगान्तरायके अनुभाग तीनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे हीन हैं। इनसे अवधिज्ञानावरण, अवधिदर्शनावरण और लाभान्तरायके अनुभाग तीनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे हीन हैं। इनसे मनःपर्ययज्ञानावरण, स्त्यानगद्धि और दानान्तरायके अनुभाग तीनों ही तुल्य होकर अनन्त गुणे हीन हैं। इनसे नपुंसकवेदका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे अरतिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे शोकका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे भयका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे जुगुप्साका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे निद्रानिद्राका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे प्रचलाप्रचलाका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे निद्राका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे प्रचलाका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे अयश:कीर्ति और नीचगोत्रका अनुभाग दोनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे हीन हैं। इससे नरकगतिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे तिर्यश्चगतिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे स्त्रीवेदका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे पुरुषवेदका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे रतिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे हास्यका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे देवायुका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे नरकायुका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे मनुष्यायुका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे तिर्यश्वायुका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इस प्रकार श्रोधके समान पञ्चन्द्रियद्विक, सद्विक, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, काययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी, अपगतवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभङ्गज्ञानी, असंयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, संज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिए। ४३७. नरकगतिमें सातावेदनीय सबसे तीव्र अनुभागवाला है। इससे यशःकीर्ति और उच्चगोत्रके अनुभाग दोनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे हीन हैं। इनसे मनुष्यगतिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे कार्मणशरीरका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे तैजसशरीरका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे औदारिकशरीरका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे मिथ्यात्वका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, असाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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