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________________ २२५ अप्पाबहुगपरूषणा ४२६. सव्वमंदाणुभागं लोभसंजल० । मायासंज. अणंतगु० । माणसंज. अणंतगु० । कोषसंज० अणंतगु० । पुरिस० अणंतगु० । हस्स० अणंतगु० । रदि० अणंतगु० । दुगुं० अणंतगु० । भय० अणंतगु०। सोग० अणंतगु०। अरदि० अणंतगु० । इत्यि० अणंतगु० । णस० अणंतगु० । पञ्चक्खाणमाण० अणंतगु०। कोधे विसे । माया विसे० । लोभो विसे० । एवं अपञ्चक्खाणचदुक्क-अणंताणु'०४ । मिच्छ. अणंतगु । ४३०. सव्वमंदाणुभागं तिरिक्खाउ० । मणुसाउ० अणंतगु० । णिरयाउ० अणंतगु० । देवाउ० अणंतगु० । ४३१. सव्वमंदाणुभागं तिरिक्ख० । णिरय० अणंतगु० । मणुस० अणंतगुः। देव० अणंतगु० । सव्वमंदाणुभागं चदुरिं० । तीइंदि० अणंतगु० । बेइंदि० अणंतगु०। एइंदि० अणंतगु०। पंचिं० अणंतगु०। सव्वमंदाणुभागं ओरालि । वेवि० अणंतगुः । तेज. अणंतगुण । कम्मइ० अणंतगु० । आहार० अणंतगु०। सव्वमंदाणुभार्ग ४२६. लोभ संज्वलन सबसे मन्द अनुभागवाला है। इससे मायासंज्वलनका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे मानसंज्वलनका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे क्रोधसंज्वलनका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे पुरुषवेदका अनुभाग अनन्तगुण अधिक है। इससे हास्यका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे रतिका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे जुगुप्साका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है । इससे भयका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे शोकका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे अरतिका अनुभाग अनन्तगुण। अधिक है। इससे स्त्रीवेदका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे नपुंसकवेदका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे प्रत्याख्यानमानका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे प्रत्याख्यान क्रोधमें विशेष अधिक है। इससे प्रत्याख्यान मायाका अनुभाग विशेष अधिक है। इससे प्रत्याख्यान लोभका अनुभाग विशेष अधिक है। इसी प्रकार अप्रत्याख्यानावरण चार और अनन्तानुबन्धी चारका कहना चाहिए। अनन्तानुबन्धी लोभके अनुभागसे मिथ्यात्वका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। ४३०. तिर्यश्चायुका अनुभाग सबसे मन्द है। इससे मनुष्यायुका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे नरकायुका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है । इससे देवायुका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। ४३१. तिर्यश्चगतिका अनुभाग सबसे मन्द है। इससे नरकगतिका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे मनुष्यगतिका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे देवगतिका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। चतुरिन्द्रियजातिका अनुभाग सबसे मन्द है। इससे त्रीन्द्रियजातिका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे द्वीन्द्रियजातिका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे एकेन्द्रियजातिका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे पश्चोन्द्रियजातिका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है । औदारिकशरीर सबसे मन्द अनुभागवाला है। इससे वैक्रियिकशरीरका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे तैजसशरीरका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे कामणशरीरका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे आहारकशरीरका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। न्यग्रोध १.पाप्रतौ अपचक्खायचदुक अयंतगु० इति पाठः। २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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