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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे
२३ भावपरूवणा ४१५. भावं दुवि०-ज० उ०। उक्क. पगदं । दुवि०-ओघे०आदे। ओघे० सव्वपगदीणं उक्कस्साणुक्कस्सअणुभागबंधए ति को भावो ? ओदइगो भावो। एवं याव अणाहारए त्ति।
४१६. जह० दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० सव्वपगदीणं ज. अज० अणुभागबंधए त्ति को भावो ? ओदइगो भावो । एवं याव अणाहारए त्ति ।
एवं भावं समत्तं ।
२४ अप्पाबहुअपरूवणा ४१७. अप्पाबहुगं दुवि०-सत्थाणअप्पाबहुगं चेव परत्थाणेअप्पाबहुगं चेव । सत्थाणअप्पाबहुगं दुविधं-जह० उक्क० च । उक० पगदं । दुवि०-अोघे० आदे।
ओघे० सव्वतिव्वाणुभाग केवलणाणावरणीयं । आभिणि० अणंतगुणहीणं । मुद० अणंतगु० । ओघि० अणंतगु० । मणपज्जव० अणंतगुणहीणं । और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें वर्षपृथक्त्वप्रमाण अन्तर है।
इस प्रकार अन्तर काल समाप्त हुआ।
२३ भावप्ररूपणा ४१५. भाव दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका कौन भाव है ? औदयिक भाव है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
४१६. जघन्य दो प्रकारका है-ओघ और श्रादेश । ओघसे सब प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धकोंका कौन भाव है ? औदायिक भाव है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
विशेषार्थ-जीवके औपशमिक आदि अनेक भाव हैं। उनमें बन्धका प्रयोजक एकमात्र औदयिक भाव है; अन्य सब नहीं, यही इससे सिद्ध होता है।
इस प्रकार भाव समाप्त हुआ।
२४ अल्पबहुत्वप्ररूपणा ४१७. अल्पबहुत्व दो प्रकारका है-स्वस्थान अल्पबहुत्व और परस्थान अल्पबहुत्व । स्वस्थान अल्पबहुत्व दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका हैमोष और आदेश। ओघसे केवलज्ञानावरण सबसे तीव्र अनुभागवाला है। इससे आभिनिबोधिक ज्ञानावरणका अनुभाग अनन्तगणा हीन है। इससे श्रतज्ञानावरणका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे अवधिज्ञानावरणका अनुभाग अन्तगुणा हीन है। इससे मनःपर्ययज्ञानावरणका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है।
१. ता. प्रतौ एवं भावं समत्त इति पाठो नास्ति। २. ता. प्रतो-बहुगे (गं) चेति परत्याणइति पाठः।
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