SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फोसणपरूवणा २०५ पसत्य०४-अगु०३-उज्जो०-तस४-णिमि० ज० छ०, अज० सव्वलो । दोआउ०. वेउव्वियछ०-आहारदुग-तित्थ. इत्थिभंगो । मणुसाउ० तिरिक्खोघं । ३६६. अवगद०-मणपज्जव०-संज०--सामाइ०-छेदो०-परिहा.-मुहुम० ज० अज० खेत० । मदि-सुद० ओघं । विभंगे पंचिंदियभंगो। ३६७. आभिणि-सुद०-ओधि० पंचणा०-छदस-बारसक०-सत्तणोक०-अप्पसत्य०४-उप०-तित्थ०-पंचंत० ज० खेत०, अज. अहचा। दोवेदणी०-मणुसाउ०मणुसगदिपंचग०-पंचि०-तेजा०-का-समचदु०--पसत्थ०४-अगु०३-पसत्थ०-तस०४के जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु, वैक्रियिक छह, आहारकशरीरद्विक और तीर्थक्कर प्रकृतिका भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है। मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। विशेषार्थ यहाँ आतपके सिवा पाँच ज्ञानावरणादिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामित्व ओघके समान है और आतपके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामित्व सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। यतः ओघसे पाँच ज्ञानावरणादि और सामान्य तिर्यश्चो के आतपके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान बतला आये हैं, अतः यहाँ भी यह क्षेत्रके समान कहा है। तथा नपुंसक सब लोकमें पाये जाते हैं, अतः इनके अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन सब लोकप्रमाण कहा है। सातावेदनीय आदि दण्डकका भङ्ग ओघके समान, नरकायु, देवायु और वैक्रियिक छह आदिका भङ्ग क्षेत्रके समान और मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है,यह स्पष्ट ही है। अब रहा स्त्रीवेददण्डक सो स्पर्शनकी दृष्टिसे संज्ञी पञ्चन्द्रिय नपुंसकों में नारकियों की मुख्यता है, इसलिए इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवो का स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। तथा इसके अजघन्य अनुभागका बन्ध एकेन्द्रियादि जीवो के सम्भव है, अत: इनके अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन सब लोकप्रमाण कहा है। ___ ३६६. अपगतवेदी, मनापर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवों में जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवों में ओघके समान है । तथा विभङ्गज्ञानियों में पञ्चन्द्रियों के समान है। _ विशेषार्थ-अपगतवेदी आदि जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान है, इसलिए इन मार्गणाओं में अपनी-अपनी प्रकृतियो के जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवों में स्वामित्व सम्बन्धी विशेषताके होने पर भी स्पर्शन ओघके समान बन जाता है, इसलिए वह ओघके समान कहा है। तथा चारों गतिके पञ्चन्द्रिय जीव विभङ्गज्ञानी हो सकते हैं, इसलिए विभङ्गज्ञानी जीवों में स्पर्शन पश्चन्द्रियों के समान बन जानेसे वह पञ्चन्द्रियों के समान कहा है। ३६७. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, सात नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, तीर्थकर और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों ने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । दो वेदनीय, मनुष्यायु, मनुष्यगतिपञ्चक, पञ्चन्द्रियजाति, तेजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्त्रसंस्थान, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy