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________________ - ~ - ~ -rrrrrrrrrrrrrrrrrowww फोसणपरूषणा १९३ अजस० ज० अज० अहे'. सव्वलो० । इथि०--पंचिंदि०--पंचसंग-ओरा०अंगो०छस्संघ०-दोविहा०-तस०-सुभग-दोसर०-आदें ज. अज. अह-बारह० । पुरिस० ज० खेत०, अज. अह-बारह । णवूस० ज० अह-बारह०, अज. अह० सव्वलो० । दोआउ०-तिण्णिजादि-आहारदु० ज० अज० खेत०। दोआउ०-तित्थ० ज० खेत्त०, अज. अह । णिरय०-णिरयाणु० ज० अज० छ० । मणुसग०-मणुसाणु०-आदाव०[उच्चा० ] ज. अज. अह। देवग०-देवाणु० ज० पंचचौ०, अज. छच्चों। ओरा०-तेजा.-क०-पसत्यव०४-अगु०३-पजा-पत्ते-णिमि० ज० अह-तेरह०, अज० अह. सव्वलो० । [ वेउव्वि०-वेउन्वि०अंगो० ओघं। 1 उज्जो०-बादर०-जस० ज० अज. अह-तेरह० । मुहुम-अपज्ज०-साधार० ज० अज० लो० असंखें सव्वलो। एवं तस०२-पंचमण-पंचवचि०-चक्खु०-सण्णि ति। स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, अनादेय और अयशःकीर्तिके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, पञ्चन्द्रियजाति, पाँच संस्थान,औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो विहायोगति,त्रस, सुभग,दो स्वर और श्रादेयके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों ने कुछ कम आठ बटे चौहह राजु और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पुरुषवेदके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों ने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवो ने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और कुछ कम बारह बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु, तीन जाति और आहारकद्विकके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। दो आयु और तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों ने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नरकगति और नरकगत्यानुपूर्वीके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों ने कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप और उच्चगोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवो ने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवगति और देवगत्यानुपूर्वीके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवो ने कुछ कम पाँच घटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों ने कुछ कम छह बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगरुलपत्रिक, पर्याप्त प्रत्येक और निर्माणके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवांने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवो ने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिक आङ्गोपाङ्गका भङ्ग ओघके समान है । उद्योत, बादर और यश:कीर्तिके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों ने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवों ने लोकके असंख्यातवें भाग और सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार त्रसद्विक, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, चक्षुदर्शनी और संज्ञी जीवों के जानना चाहिए । १. ता. प्रतौ ज. अह इति पाठः । २. ता० प्रती अपज्ज सादा० ज० इति पाठः । २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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