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________________ १६० महापंधे अणुभागबंधाहियारे चौ । बादरजहणं खेतभंगो। अज० सत्तचों । सैसाणं ज० अज० खेतभंगो । ३८२. देवेसु पंचणा०-णवदंस-मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक-अप्पसत्य४उपे०-पंचंत० ज० अह०, अज. अह-णव० । सादासाद०-तिरिक्ख०-एइंदिय०-ओरा०तेजा-क०-हुंड०-पसत्थ०४-तिरिक्वाणु०-अगु०३-उज्जो०-थावर-बादर-पज्जत्त-पत्तेथिराथिर-सुभासुभ-भग-अणादें-जस०-अजस०-णिमि०-णीचा० ज० अज. अह-णव०। इत्थि०-पुरिस०-दोआउ०-मणुस०--पंचिं०-पंचसंठा--ओरालि०अंगो०--छस्संघ०-मणुसाणु०-आदाव०-दोविहा०--तस०--सुभग-दोसर०-आदें--तित्थ०-उच्चा० ज० अज० अहः । एवं सव्वदेवाणं अप्पप्पणो फोसणं णेदव्वं । तिर्यञ्चोंके समान है। उद्योतके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । बादरके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। विशेषार्थ यहाँ प्रथम दण्डकमें कही गई प्रकृतियोंका जघन्य अनुभागबन्ध जो जीव करते हैं, उनका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण होनेसे वह उक्त प्रमाण कहा है। तथा उक्त मनुष्योंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा सर्वलोक प्रमाण होनेसे उक्त प्रकृतियोंके अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका उक्त प्रमाण स्पर्शन कहा है। जो ऊपर बादर एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते हैं, उनके उद्योतके जघन्य और अजघन्य अनुभागका बन्ध सम्भव है, इसलिए इसके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका कुछ कम सात बटे चौदह राजूप्रमाण स्पर्शन कहा है। बादरके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका कुछ कम सात बटे चौदह राजूप्रमाण स्पर्शन इसी प्रकार घटित कर लेना चाहिए। शेष कथन स्पष्ट ही है । ३८२. देवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, सात नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाठ बटे चौदह राजु और कुछ कम नौ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तेजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान,प्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुत्रिक, उद्योत, स्थावर, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, यश-कीर्ति, अयश:कीर्ति, निर्माण और नीचगोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राज और कुछ कम नौ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, दो आयु, मनुष्यगति, पञ्चन्द्रिय जाति, पाँच संस्थान, औदारिकाङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, पातप, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वर, आदेय, तीर्थङ्कर और उच्चगोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सब देवोंके अपना-अपना स्पर्शन जानना चाहिये। विशेषार्थ-एकेन्द्रियोंमें समुद्घात करते समय पाँच ज्ञानावरणादिका जघन्य अनुभाग १. श्रा० प्रती अप्पसत्य उप० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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