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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे तिरिक्ख.--एइंदि०-तिरिक्वाणु०--थावरादि०४-[अथिरादिछ०] उ० लो० असं० सव्वलो०, अणु० सव्वलो० । दोआउ०-वेउन्वियछ० उ० अणु० खेत्तभंगो । मणुसाउ० तिरिक्खोघं । अणाहार० कम्मइगभंगो ।
एवं उक्कस्सफोसणं समत्तं । ३७६. जहण्णए पगदं। दुवि०-ओघे० आदे। ओघे० पंचणा०-णवदंस०-मिच्छ०सोलसक०-सत्तणोक-तिरिक्व०--अप्पसत्थ०४-तिरिक्वाणु०--उप०-णीचा०--पंचंत० जहणं अणुभागं बंधगेहि केवडियं खेतं फोसिदं ? लोग० असंखें, अज० सव्वलो। सादासाद-तिरिक्खाउ०-मणुस०--चदुजा०--छस्संठा०--छस्संघ०-मणुसाणु०-दोविहा०असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । हास्य, रति, तिर्यश्चगति, एकेन्द्रियजाति, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, स्थावर
आदि चार और अस्थिर आदि छहके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु और वैक्रियिक छहके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य तियञ्चोंके समान है। अनाहारक जीवोंमें कार्मणकाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है।
विशेषार्थ-यहाँ प्रथम दण्डकमें कही गई प्रकृतियोंका व अन्य सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट नुभागबन्ध अपने-अपने योग्य परिणामोंके साथ असंज्ञी पद्धोन्द्रिय जीव करते हैं। उसमें भी प्रथम दण्डकमें कही गई प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घातके समय नहीं होता, अतः इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है और दूसरे दण्डकमें कही गई प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घातके समय भी होता है। अत: इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और अतीत कालीन स्पर्शन सब लोक प्रमाण कहा है। इन सबका अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध एकेन्द्रिय जीव भी करते हैं, अत: इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सब लोक प्रमाण कहा है। नरकायु, देवायु और वैक्रियिकछहका उत्कृष्ट
और अनुत्कृष्ट अनुभागमन्ध असंज्ञी पञ्चन्द्रिय ही करते हैं और ऐसे जीवोंका उनका बन्ध करते समय एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात नहीं होता, इसलिए इनके दोनों प्रकारके अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। मनुष्यायुका भङ्ग स्पष्ट ही है। संसारी जीवोंके अनाहारक अवस्था कार्मणकाययोगके समय होती है, इसलिए अनाहारकोंकी प्ररूपणा कार्मणकाययोगी जीवोंके समान कही है।
__ इस प्रकार उत्कृष्ट स्पर्शन समाप्त हुआ। ३७६. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, सात नोकषाय, तिर्यश्चगति, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, उपघात, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, तिर्यञ्चायु, मनुष्यगति, चार जाति, छह संस्थान, छह संहनन,
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