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फोसणपरूवणा
१५७ उज्जो० उ० खेत्तः । अणु० लो० असंखें सत्तचों । बादर० उ० छच्चों । अणु० तेरह० । जस० उ० छ । अणु० सत्तचों । अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। उद्योतके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और कुछ कम सात बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। बादर प्रकृतिके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। यशस्कीर्तिके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ-पाँच ज्ञानावरणादिके स्पर्शनका स्पष्टीकरण जिस प्रकार सामान्य तियश्चोंके कर आये हैं, उसी प्रकार यहाँ भी कर लेना चाहिए । मात्र इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका सर्व लोक प्रमाण स्पर्शन एकेन्द्रियों में समुद्घात कराके लाना चाहिए। स्त्रीवेद और पुरुषवेद तियवादि तीन गति सम्बन्धी प्रकृतियाँ हैं, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। तथा इन प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा कुछ कम डेढ़ राजू और कुछ कम छह राजू स्पर्शन देखा जाता है, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है । यहाँ इतना विशेष जानना चाहिए कि यद्यपि मारणान्तिक समुद्घातके समय भी इनका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध होता है, पर देवोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते समय यह नहीं होता, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्पर्शन इस अपेक्षासे नहीं कहा है। हास्य और रति आदिका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते समय भी होता है, इसलिए इनका दोनों प्रकारका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक कहा है। चार आयुओंका मारणान्तिक समुद्घातके समय बन्ध नहीं होता, और शेष प्रकृतियाँ मनुष्यों और स तिर्यश्चों सम्बन्धी हैं। एक प्रातप इसकी अपवाद है सो वह भी बादर पृथिवीकाय सम्बन्धी होकर भी प्रशस्त प्रकृति है, अतः इनका दोनों प्रकारका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। देवोंमें और नारकियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करने वाले तिर्यञ्चोंका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजू होता है, इसलिए दो गति आदिके उत्कृष्ट
और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है, क्योंकि यथायोग्य ऐसे समयमें इन प्रकृतियोंका दोनों प्रकारका बन्ध सम्भव है। जो संयतासंयत तिर्यश्च देवों में मारणान्तिक समुद्घात कर रहे हैं, उनके पश्चन्द्रियजाति आदिका उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध सम्भव है और जो देवों और नारकियों में मारणान्तिक समुद्घात कर रहे हैं। उनके इनका अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्भव है, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका कुछ कम छह बटे चौदह राजू और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका कुछ कम बारह बटे चौदह राजू प्रमाण स्पर्शन कहा है। औदारिकशरीरका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध संज्ञी पश्चोद्रिय तिर्यश्च करते हैं और ये एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्घात नहीं करते, इसलिए इसके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। तथा इसका अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध उन जीवोंके भी होता है जो एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्वात करते हैं, इसलिए इसके अनुत्कृष्ट अनुभागके भन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक कहा है। उद्योतका
३. ता० प्रती छचोद अगु० जस० उ० खेतं तेरह जस० उ० छ०, श्रा० प्रती छचो० अणु० तेह । जस०छ० इति पाठः।
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