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महाधे अणुभागबंधाहियारे
३३७. अब्भवसि० पंचणा ० णवदंस०-मिच्छ० - सोलसक० णवणोक ० - तिरिक्ख पंचिंदियजादि -- तिष्णसरीर--ओरा० गो०--पसत्थापसत्थ०४ - तिरिक्खाणु०-अगु०४आदाउज्जो ० -तस०४ - णिमि० णीचा ० - पंचंत० ज० असंखे ० । अज० अनंता । सेसाणं ओघं । एवमणि त्ति । सासणे मणुसाउ० देवभंगो । सेसाणं ज० अ० असंखे० । सम्मामि० सव्वपग० ज० ज० असंखेज्जा । अणाहार० कम्मइगभंगी ।
एवं परिमाणं समत्तं ।
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१६ खेत्तपरूवणा
३३८. खेत्तं दुविधं – जहण्णयं उकस्सयं च । उक्क० पगदं । दुवि० – ओघे ० आदे० | ओघे० तिणिआउ० - वेडव्वियछ० - आहारदुग-तित्थ० उक्क० अणुक्क० अणुभागबंध • केवडि खेते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे । सेसाणं उ० अणुभा० केव० १ लोगस्स असंखेज्ज० । अणुक्क० सव्वलोगे । एवं ओघभंगो तिरिक्खोघो कायजोगिओरालि ०--ओरालियमि० - कम्मइ०-- णर्युस ० -- कोधादि ०४ --मदि० - सुद० -- असंज०
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३३७. अभव्यों में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, तिर्यचगति, पश्र्च ेन्द्रियजाति, तीन शरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त वर्ण चतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, श्रातप, उद्योत, त्रसचतुष्क, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं । अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीव अनन्त हैं। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग प्रोघके समान है। इसी प्रकार असंज्ञी जीवोंके जानना चाहिए । सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों में मनुष्यायुका भंग देवोंके समान है। शेष प्रकृतियों के जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं । सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवों में सब प्रकृतियों के जघन्य और जघन्य अनुभाग के बन्धक जीव असंख्यात हैं। अनाहारक जीवोंमें कार्मणका ययोगी जीवोंके समान भंग है ।
विशेषार्थ - ओघ से सब प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव कितने हैं इसका स्पष्टीकरण किया ही है। उसी प्रकार अपने अपने स्वामित्वको ध्यान में रखकर सब मार्गओमें स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए। कोई विशेषता न होनेसे अलग अलग स्पष्टीकरण नहीं किया है।
इस प्रकार परिमाण समाप्त हुआ ।
१६ क्षेत्ररूपणा
३३८. क्षेत्र दो प्रकारका है— जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृटका प्रकरण हैं। निर्देश दो प्रकारका है - श्रोध और आदेश । श्रघसे तीन आयु, वैक्रियिक छह, आहारकद्विक और तीर्थङ्कर के : उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके वन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकका श्रसंख्यातवाँ भाग क्षेत्र है । शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकका असंख्यातवां भाग क्षेत्र है । अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका सब लोक क्षेत्र है । इस प्रकार के समान सामान्य तिर्य, काययोगी, श्रदारिककाययोगी, श्रदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसकवेदी,
१. श्र० प्रतौ एवं सण्णि त्ति इति पाठः । २ ता० प्रतौ एवं परिमाणं समत्तं इति पाठो नास्ति ।
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