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________________ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे बादर-पज्जत्त-पत्ते-णिमि० णिय. अणंतगुणः। उज्जोवं सिया अणंतगुणहीणं । अप्पसत्थ०४-उप०-अथिरादिपंच० णियः। तं तु० छटाणपदिदं० । एवं हुंड० भंगो अप्पसत्थवण्ण०४--उप०-अथिरादिपंच । यथा संठाणं तथा चदुसंघ० । ११. असंप० उ० अणु० बं० तिरिक्ख०--हुंड०--अप्पसत्थवण्ण०४-तिरिक्खाणु०-उप०-अप्पस०-अथिरादिछ० णि०। तं तु. छहाणपदिदं० । पंचिंदि०ओरालि०-तेजा-क०-ओरालि०अंगो०-पसत्थ०४-अगु०३-तस०४-णिमि० णिय. अणंतगुणहीणं० । उज्जो० सिया० अणंतगुणहीणं । १२. आदाव० उ० बं. तिरिक्खग०-एइंदि०-ओरालि.-तेजा०-०-हुंड०पसत्यापसत्य०४-तिरिक्खाणु०-अगु०४-थावर-बादर-पज्जत्त-पत्ते ०-दूभ०-अणादेंणिमि० णिय० अणंतगुणहीणं । थिराथिर-सुभासुभ-जस० - अजस० सिया० अणंतगुणहीणं० । उज्जो० उ० बं०'तिरिक्ख०-पंचिंदि०-ओरालि०-तेजा०-क०-समचदु०हीन अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है। तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, बादर, पयप्ति, प्रत्येक और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है जो अनन्तगु अनत्कृष्ट अनुभागको लिये हुए होता है। उद्योतका कदाचित् बन्ध करता है जो अनन्तगुणे हीन अनुत्कृष्ट अनुभागको लिये हुए होता है । अप्रशस्त वर्ण चतुष्क, उपवात और अस्थिर आदि पाँच का नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनके उत्कृष्ट अनुभागका भी बन्ध करता है और अनुत्कृष्ट अनुभागका भी बन्ध करता है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है,तो वह छह स्थान पतित हानिको लिये हुए होता है। इसी प्रकार हुण्डक संस्थानके समान अप्रशस्तवर्ण चतुष्क, उपघात और अस्थिर आदि पाँचकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। जिस प्रकार चार संस्थानोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष कहा है, उसी प्रकार चार संहननोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। ११. असम्प्राप्तामृपाटिका संहननके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव तिर्यञ्चगति, हुण्डसंस्थान, अप्रशस्त वर्ण चतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उपघात, अप्रशस्त विहायोगति और अस्थिर आदि छहका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह उत्कृष्ट अनुभागका भी बन्ध करता है और अनुत्कृष्ट अनुभागका भी बन्ध करता है । यदि वह इनके अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है, तो इनका छह स्थान पतित हानिको लिये हुए बन्ध करता है । पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, प्रशस्तवर्ण चतुष्क, अगुरुलवुत्रिक, त्रस चतुष्क और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है जो अनन्तगुणेहीन अनुत्कृष्ट अनुभागको लिये हुए होता है। उद्योतका कदाचित् बन्ध करता है जो अनन्तगुणेहीन अनुत्कृष्ट अनुभागको लिये हुए होता है। १२. आतपके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव तिर्यश्चगति, एकेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तेजस शरीर, कार्मण शरीर, हुण्ड संस्थान, प्रशस्त वर्ण चतुष्क, अप्रशस्त वर्ण चतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु चतुष्क, स्थावर, बादर, पर्यात, प्रत्येक, दुर्भग, अनादेय और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है जो अनन्तगुणे हीन अनुत्कृष्ट अनुभाग बन्धको लिये हुए होता है। स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यशःकीर्ति और अयशः कीर्तिका कदाचित् बन्ध करता है जो अनन्तगुणे हीन अनुत्कृष्ट अनुभागको लिये हुए होता है । उद्योतके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करने १. ता-श्रा०प्रत्योःपंच णिमि.णिय० इति पाठः। २. ता. श्रा०प्रत्योः 'अणंतगुणहीणं' अतोऽने 'यथा गदितथा प्राणुपुत्रि०' इत्यधिकः पाठोऽस्ति। ३. ता.श्रा०प्रत्योः उझो० उप०तिरिक्ख इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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