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________________ बंधसण्णियासपरूवणा ५ 2 अपज्ज० - पत्ते ० -अथिरादिपंच० - णिमि० णिय अनंतगुणहीणं । [असंप णि० तं तु ० ] | एवं इंदि० चदुरिंदि० । ८. गोद० उ० ० तिरिक्खग० मणुसग ० चदुसंघ० - दोआणु० - उज्जो० सिया अनंतगुणहीणं वं० | पंचिदि० ओरालि०-तेजा० क० -ओरालि० अंगो०-पसत्यापसत्य ०४अगु०४ - [अ - ] पसत्थ ०-तस०४- अथिरादि६० - णिमि० निय० अनंतगुणहीणं । एवं सादि० | णवरि तिष्णिसंघ० । ० क० है. खुज्ज० उ० अणु० बं० तिरिक्ख० पंचिंदि ० - ओरालि०- तेजा ०ओरालि० अंगो०- पसत्यापसत्य ०४- तिरिक्खाणु० अगु०४ - [ अ ] पसत्थ० -तस०४अथिरादि० - णिमि० वि० अनंतगुणहीणं । दोसंघ० उज्जो० सिया० अनंतगु० । एवं वामणसंठा० । णवरि एयसंघ० ' -उज्जो० सिया अनंतगु० । 10. १०. हुंड० उ० बं० णिरय - तिरिक्खग ० - एइंदि० - असं प ० - दोआणु० - अप्पसत्थविहा० -[थावर० ]- दुस्सर० सिया० । तं तु ० इहाणपदिदं० । पंचिंदि० ओरालि० - वेडव्वि०दोगो० - आदाव-तस० सिया० अनंतगु० । तेजा० क० - पसत्थव ०४ - अगु०३भी बन्ध करता है । यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है, तो वह छह स्थान पतित हानिरूप होता है । इसी प्रकार त्रीन्द्रियजाति और चतुरिन्द्रियजातिकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । ८. न्यप्रोध संस्थानके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, चार संहनन, दो पूर्वी और उद्यतका कदाचित् अनन्तगुणा हीन अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है | पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त व चतुष्क, अप्रशस्त वर्ण चतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, अस्थिर आदि छह और निर्माणका नियमसे अनन्तगुणाहीन अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है । इसी प्रकार स्वाति संस्थानकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसके तीन संहनन कहने चाहिए। ६. कुब्जक संस्थान के उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव तिर्यञ्चगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, औदारिक अङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त वर्ण चतुष्क, प्रशस्त व चतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु चतुक, अप्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क स्थिर आदि छह और निर्माणका नियनले अनन्तगुणा हीन अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है । दो संहनन और उद्योतका कदाचित् बन्ध करता है । जो अनन्तगुणा हीन अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है। इसी प्रकार वामन संस्थानकी मुख्यताले सन्निकर्ष जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि वह एक संहनन और उद्योतका कदाचित् अनन्तगुणा हीन अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है । १०. हुण्ड संस्थान के उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव नरकगति, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रिय जाति, संप्राप्तासृपाटिका संहनन, दो आनुपूर्वी, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर, और दुःearer कदाचित् बन्ध करता है । यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट अनुभागका भी बन्ध करता है और अनुभागका भी बन्ध करता है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है तो वह इनका छह स्थान पतित हानिको लिये हुए बन्ध करता है । पंचेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर, दो आङ्गोपाङ्ग, आतप और त्रसका कदाचित् बन्ध करता है जो अनन्तगुणा १. ता० - श्रा० प्रत्योः श्रसंघ० इति पाठः । २. ता० - श्रा० प्रत्योः श्रादावुजो तस० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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