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________________ १४० महाबंधे अणुभागबंधाहियारे तिरिक्खाणु०-णीचा. ज. अज० ओघ । सेसाणं ज. अज० अणंता । पंचिं०-तस०२ पंचणा०-णवदंस०-मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक०-अप्पसत्थ०४-उप०-तित्थय०-पंचंत० ज० संखेज्जा । अज० असंखेज्जा । आहारदुगं ओघं । सेसाणं ज० अज. असंखेंज्जा। एवं पंचमण०-पंचवचि०-इत्थि०-पुरिस०-विभंग०-चक्खु०-सणि त्ति । ३३३. ओरालियमि० पंचणा०-छदसणा०--बारसक०--अप्पसत्थ०४-उप०पंचंत० ज० संखेज्जा । अज. अणंता । मणुसाउ० ओघं। देवगदिपंचगस्स उक्कस्सभंगो । सेसाणं ओरालियकायजोगिभंगो । वेउव्वि०-वेउब्धियमि०-आहार-आहारमि० उक्कस्सभंगो। कम्मइ. पंचणा०-णवदंस०-मिच्छ-सोलसक०-णवणोक०-तिरिक्ख०पंचिं०--ओरा०-तेजा०-क०--ओरा०अंगो०--पसत्थापसत्थ०४-तिरिक्वाणु०--अगु०४आदाउज्जो०-तस०४-णिमि०-णीचा०-पंचंत० ज० असंखें । अज० अणंता । देवगदिपंचगं उक्कस्सभंगो । सेसाणं सादादीणं ज० अज० अणंता । ३३४. अवगद०--मणपज्जव०-संजद--सामाइ०-छेदो०--परिहार० -मुहुमसंप० उकस्सभंगो। गति, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका भंग पोषके समान है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके वन्धक जीव अनन्त हैं। पश्चन्द्रिय,पञ्चन्द्रियपर्याप्त, त्रस और सपर्याप्त जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, सात नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, तीर्थङ्कर और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीव संख्यात है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात है। आहारकद्विकका भंग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभंगज्ञानी, चक्षुदर्शनी और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिए। ३३३. औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीव संख्यात हैं। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव अनन्त हैं। मनुष्यायुका भंग अोधके समान है । देवगतिपञ्चकका भंग उत्कृष्टके समान है। शेष प्रकृतियोंका भंग औदारिककाययोगी जीवोंके समान है। वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवों में उत्कृष्टके समान भंग है । कार्मणकाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, तिर्यञ्चगराि, पञ्चन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, औदारिक अांगोपांग, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरु लघुचतुष्क, आतप, उद्योत, त्रसचतुष्क, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभाग के बन्धक जीव असंख्यात हैं। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव अनन्त हैं। देवगतिपञ्चकका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। शेष सातावेदनीय आदिके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव अनन्त हैं। ३३४. अपगतवेदी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंवत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंका भङ्ग उत्कृष्टके समान है । १. ता. प्रतौ -णियोदाणं मणुसाउ० ओघं इति पाठः । २. ता. प्रतो ज० अणंता इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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