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________________ परिमाणपरूवणा १३६ ३३०. णेरइग-सव्वदेवाणं ज० अज० उक्कस्सभंगो। तिरिक्खेसु साददंडओ तिण्णिआउ०--वेउब्धियल० ओघं । सेसाणं ज. असंखेंजा। अज० अणंता । सव्वपंचिंदिय तिरि० सव्वपग० ज० अज० असंखेज्जा । एवं सव्वअपज्ज०-सव्वविगलिंदि०सव्वपुढ०-आउ०-तेउ०-वाउ० बादरपत्ते । ३३१. मणुसेसु पंचणा०-णवदंसणा०-मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक०-पंचिंदि०ओरा०-तेजा-क०-ओरालि०अंगो०-पसत्यापसत्थ०४-अगु०४-आदाउज्जो०-तस०४णिमि०--पंचंत० ज० संखेंज्जा । अज० असंखेज्जा । सादासाद०-दोआउ०--दोगदिचदुजा०-छस्संठा०-छस्संघ०-दोआणु०-दोविहा०--थावरादि०४-धिरादिछयु०-दोगो० ज० अज. असंखेंजा । दोआउ०-वेउव्वियछ०-आहारदुग-तित्थ० ज० अज० संखेंजा । मणुसज्जत्त-मणुसिणीसु सव्वपग० ज० अज० उक्स्सभंगो। ३३२. एईदिएसु तिरिक्ख-मणुसाउ०-तिरिक्ख०-तिरिक्खाणु०-णीचा. जह० अज० ओघं । सेसाणं ज० अज० अणंता । वणप्फदि-णियोदाणं मणुसाउ०-तिरिक्ख०. ही करते हैं और वे संख्यात हैं, अतः इस योगमें तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव संख्यात कहे हैं । __ ३३०. नारकियों और सब देवोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका भङ्ग उत्कृष्ट प्ररूपणाके समान है। तिर्यञ्चोंमें सातावेदनीयदण्डक, तीन आयु और वैक्रियिकछहका भङ्ग ओषके समान है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव अनन्त हैं। सब पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्चोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार सब अपर्याप्त, सव विकलेन्द्रिय, सब पृथिवीकायिक, सब जलकायिक, सब अग्निकायिक, सब वायुकायिक और बादर प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवोंके जानना चाहिए । __ ३३१. मनुष्योंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, पञ्चन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, आतप, उद्योत, सचतुष्क, निर्माण और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीव संख्यात हैं । अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। सातावेदनीय, असातावेदनीय, दो आयु, दो गति, चार जाति, छह संस्थान, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति, स्थावर आदि चार, स्थिर आदि छह युगल और दो गोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। दो आयु, वैक्रियिक छह, आहारकद्विक और तीर्थकरके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। मनुष्यपर्याप्त मनुष्यनियोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य और अजवन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका भंग उत्कृष्टके समान है। . ३३२. एकेन्द्रियोंमें तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु, तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रके जघन्य और अजवन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका भंग ओषके समान है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव अनन्त हैं। वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंमें मनुष्यायु, तिर्यश्च. १. ता. प्रतो यावरादि० थिरादिछयु० इति पाठः। २. ता० प्रा० प्रत्योः असंखेजा. इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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