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परिमाणपरूवणा
१३७ खइगाणं पंचिंदियभंगो। दोआउ० मणुसि०भंगो। सेसाणं आणदभंगो। आहारदुर्ग ओघं।
३२८. अब्भवसि० णिरयाउ०-उ०छ. उ. अणु० असंखेज्जा। तिण्णिआउ० ओघं । सेसाणं उ० असंखेजा। अणु० अणंता । सासणे दोआउ० उ० संखेंजा । अणु० असंखेंज्जा । मणुसाउ० मणुसि भंगो। सेसाणं उ० अणु० असंखेंज्जा । सम्मामि० सव्वपगदीणं उ० अणु० असंखेज्जा । असण्णीसु दोआउ०-वेउव्वियछ. उ. अणु० असंखेंज्जा । मणुसाउ० ओघं । सेसाणं उ० असंखेज्जा । अणु० अणंता ।
एवं उक्कस्सं परिमाणं समत्त । ३२६. जहण्णए पगदं । दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० पंचणा०-णवदंस.. मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक... अप्पसत्य०४-उप०-पंचंत० ज० अणु० कॅत्तिया ? संखेजा । अज० अणुभा० के० ? अणंता। सादासाद०-तिरिक्खाउ०-मणुसगदिचदुजादि-छस्संठा०-छस्संघ०--मणुसाणु०-दोविहा०-थावरादि०४-थिरादिछ०--उच्चा० हैं। इसी प्रकार पद्मलेश्यामें जानना चाहिए । शुक्ललेश्यामें क्षायिक प्रकृतियोंका भंग पञ्चन्द्रियोंके समान है। दो आयुओंका भंग मनुष्यिनियोंके समान है। शेष प्रकृतियोंका भंग आनत कल्पके समान है । आहारकद्विकका भंग श्रोधके समान है।
विशेषार्थ-शुक्ललेश्यामें मनुष्यायुका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध असंयतसम्यग्दृष्टि देव और देवायुका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध अप्रमत्तसंयत मनुष्य करता है। इसी प्रकार इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक भी संख्यात हैं, इसलिए इनका भंग मनुष्यिनियोंके समान कहा है। शेष कथन सुगम है।
३२८. अभव्योंमें नरकायु और वैक्रियिक छहके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। तीन आयुअोंका भङ्ग ओषके समान है। शेष प्रकृयियोंके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव अनन्त हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें दो आयुओंके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। मनुष्यायुका भंग मनुष्यनियोंके समान है। शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें सब प्रकृतियों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। असंज्ञी जीवोंमें दो आयु और वैक्रियिक छहके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। मनुष्यायुका भंग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव अनन्त हैं।
इस प्रकार उत्कृष्ट परिमाण समाप्त हुआ। ३२६. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, सात नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात
और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। सातावेदनीय, असातावेदनीय, तिर्यश्चायु, मनुष्यगति, चार जाति, छह संस्थान, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति, स्थावर आदि चार, स्थिर
१. ता. प्रतौ एवं उक्कसं परिमाणं समत्तं इति पाठो नास्ति । २. ता. प्रतौ मणुसाउ इति पाठः।
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