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भागाभागपरूवणा
१२६ य अबंधगा य । बादरपज्जताणं उक्स्स भंगो । सेसाणं गेरइगादीणं याव अणाहारगे त्ति उक्कस्सभंगो।
एवं भंगविचयं समत्त ।
१७ भागाभागपरूवणा ३१४. भागाभागं दुवि०-जह• उक्क । उक्त पगदं । दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० तिण्णिआउ०-वेउव्वियछ०-तित्थ० उकस्सअणुभागबंधगा जीवा सव्वजीवाणं केवडियो भागो ? असंखेजदिभागो। अणुक० अणुभागबं० जीवा० सव्वजीवाणं केव० भागो ? असंखेंज्जा भागा। आहारदुर्ग उक्क० अणुभागबंध० सव्वजी० केव० १ संखेंज। अणु० संखेज्जा भागा। सेसाणं उक्क० केव० ? अणंतभा० । अणु० केव० ? अणंता भागा । एवं ओघभंगो तिरिक्खोघो कायजोगि०--ओरालि०-ओरालियमि०--कम्मइ०णवूस०-कोधादि०४-मदि०-सुद०-असंज०-अचक्खु०-तिण्णिले०-भवसि०-अब्भवसि०मिच्छा०-असण्णि०-आहार०-अणाहारग ति । णवरि ओरालियमि०-कम्मइ०-अणाहारएसु देवगदिपंचग० आहारसरीरभंगो। किण्ण-णीलाणं तित्थ० आहार०भंगो । एवं ओरालिय० इत्थि०बं०। णिरएसु सव्वपगदीणं उक्क० असंखेंजदि० अणु० असंखेंज्जा बादर पर्याप्त जीवोंका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। शेष नारकियोंसे लेकर अनाहारक तकके जीवोंमें उत्कृष्टके समान भङ्ग है।
इस प्रकार भङ्गविचय समाप्त हुआ।
१७ भागाभागप्ररूपणा ३१४. भागाभाग दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्ट का प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे तीन आयु, वैक्रियिक छह और तीर्थङ्करके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं । आहारकद्विकके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव सब जीवों के कितने भागप्रमाण हैं ? संख्यातवें भागप्रमाण हैं । अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्त बहुभागप्रमाण हैं । इस प्रकार ओघके समान सामान्य तियश्च, काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें देवगतिपञ्चकका भङ्ग आहारकशरीरके समान है। कृष्ण और नीललेश्यामें तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग आहारक. शरीरके समान है। इसी प्रकार औदारिककाययोगी जीवोंमें स्त्रीवेदके बन्धक जीवोंका भङ्ग जानना चाहिए। नारकियोंमें सब प्रकृतियोंके आकृष्ट अनुभागके वन्धक जीव असेंख्यातवें भागप्रमाण
१. ता. प्रती एवं भागाभाग समतं इति पाठो नास्ति । २. ता. श्रा. प्रत्योः जीवाणं इति पाठः। है. ता० प्रती सव्वजीवे. केव० इति पाठः। ४. ता० प्रती अणंतभागा इति पाठः।
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