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________________ अन्तरपरूवणा ५६ १४४. तिरिक्खसु धादि०४ जह० जह० एग०, उ० अद्धपोग्गलदे। अज० जह. एग०, उक्क० बेसमयं । वेद०-णामा० जह० ओघं। अज० जह० एग०, उक्क. चत्तारि समयं । आउ० जह ओघं । अज. अणुक्कस्सभंगो । गोद० जह० जह० एग०, उक्क० अणंतकालं. असंखें । अज० जह० एग०, उक० बेसमयं । पंचिंदि०तिरिक्ख०३ धादि०४ जह० जह० एग०, उक्क. पुवकोडिपुधत्तं । अज० ज० एग०, उक्क० बेसमयं । वेद०-णामा० जह० ज० एग०, उक्क० तिण्णिपलि० पुव्वकोडिपुधत्तं । अज० जह० एग०, उक्क० चत्तारिसम० । आउ० ज० जह० एग०, उक्क० पुत्वकोडिपुधत्तं। अज० अणुभंगो। गोद० जह० जह० एग०, उक्क० पुथ्वकोडिपुध०। अज०' जह० एग०, उक्क० चत्तारि सम । अन्तर अन्तमुहूर्त कहा है। गोत्रकमके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है, इसलिए इसके अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय कहा है। सातवीं पृथिवीमें यह ओघ प्ररूपणा अविकल घटित हो जाती है, इसलिए उसमें सामान्य नारकियोंके समान अन्तर काल कहा है। हाँ,प्रारम्भकी छह पृथिवियोंमें गोत्रकर्मकी वेदनीय और नामकर्मसे स्वामित्वकी अपेक्षा कोई विशेषता नहीं है, इसलिए इनमें और सब अन्तर तो अपनी-अपनी स्थितिके अनुसार सामान्य नारकियोंके समान है,पर गोत्रकर्मकी अपेक्षा यह अन्तर वेदनीयके समान कहा है। शेष अन्तर कालको विचार कर ले आना चाहिये। १४४. तिर्यश्चोंमें चार घाति कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्ध पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। वेदनीय और नाम कर्मके जघन्य अनुभागबन्धका अन्तरकाल ओघके समान है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है। आयुकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका अन्तरकाल ओघके समान है। अजघन्य अनुभागबन्धका अन्तरकाल अनुत्कृष्टके समान है। गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है । पचेन्द्रिय तिर्यश्च त्रिकम चार घातिकर्मोंके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्व प्रमाण है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। वेदनीय और नाम कर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्य है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है। आयुकर्मके जघन्य अनुभागवन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्ल प्रमाण है। अजघन्य अनुभागबन्धका अन्तरकाल अनुत्कृष्टके समान है। गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्व प्रमाण है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है। विशेषार्थ-तियञ्चोंमें चार घातिकोका जघन्य अनुभागबन्ध संयतासंयतके होता है और संयतासंयतका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण है, अतः यहाँ इनके जघन्य अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण कहा है। तिर्यञ्चोंमें गोत्र कर्मका जघन्य अनुभागबन्ध बादर अनिकायिक और बादर वायुकायिक जीवके होता है। तथा इनका उत्कृष्ट । मूलमती म.ना.जा. ए. इति पाता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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