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________________ अन्तरपरूवणी उक्क० अणंतकालं असंखेंजा० । अणु० जह० एग०, उक्क० बेसम० । आउ० उका जह. एग०, उ० पुव्वकोडितिभागं देसू० । अणु० जह० एग०, उक्क० पुव्यकोजी सादि० । १४१. आहार० घादि०४ उक्क० जह० एग०, उक्क० अंगुल० असंखेज० । अणु० ओघं । वेद०-णामा-गोदा० ओघं। आउ० उक० जह० एग०, उक० अंगुल. असंखें । अणु० ओघं। ___ एवमुक्कस्समंतरं समतं । १४२. जहण्णए पगदं। दुवि०-ओघे० आदे०। ओधे० घादि०४ जह णथि अंतरं । अज० जह० एग०, उक्क० अंतो० । वेद०-गामा० जह० जह• एग०, उक्क० असंखेंजा लोगा। अज० जह० एग०, उक्क० अंतो० । आउ० जह० वेदणीयमंगो । अज० जह० एग०, उक० तेंतीसं साग० सादि । गोद० जह० जह० अंतो०, उक० अद्धपोग्गल | अज० जह० एग०, उक० अंतो । एवं अचखुदं०-भवसि० । उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर एक पूर्वकोटिका कुछ कम विभाग प्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक पूर्वकोटि है। विशेषार्थ-असंही जीवको पहिली पूर्वकोटिके त्रिभागमें आयुकर्मका अनुस्कृष्ट अनुभागबन्ध कराके पुनः पूर्वकोटिकी आयुवाले असंझियोंमें उत्पन्न कराकर अन्तमें आयुबन्ध करावे और इस प्रकार आयुकर्मके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका उस्कृष्ट अन्तर साधिक एक पूर्वकोटि ले श्रावे । शेष कथन सुगम है। १४१. आहारक जीवोंमें चार घातिकर्मो के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अङ्गुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल ओघके समान है। वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मका भङ्ग ओघके समान है | आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अङ्गलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल ओषके समान है। विशेषार्थ-श्राहारकोंकी उत्कृष्ट कायस्थिति अङ्गलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। इसी बातको ध्यानमें रखकर यहाँ चार घातिकर्म और आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उक्त प्रमाण उकृष्ट अन्तर काल कहा है। शेष कथन सुगम है । इस प्रकार उकृष्ट अन्तर समाप्त हुआ। १४२. जघन्यका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे चार घातिकर्मोंके जघन्य अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। वेदनीय और नामकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोक प्रमाण है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । आयु कर्मके जघन्य अनुभागबन्धका भंग वेदनीय कर्मके समान है । अजघन्य अनुभागबन्धकाजघन्य अन्तर एक समय है और उस्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है। गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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