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महाधे श्रणुभागबंधाहियारे
१३८. वेदग० सत्तणं क० उक्क० णत्थि अंतरं । अणु० एय० । णवरि घादि०४ अणु णत्थि अंतरं । आउग० अधिणाणा० भंगो । उवसम० सत्तण्णं क० उक्क० णत्थि अंतरं । अणु ० जह० एग०, उक्क० अंतो० ।
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१३६. सासणे घादि०४ उक्क० अणुक्क० णत्थि अंतरं । वेद० आउ० णामा-गोदा० उक्क० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अणु० जह० एग०, उक्क० बेसम० । सम्मामि० aaणं क० उक्क० अणु० णत्थि अंतरं ।
१४०. सणि० पंचिंदियपत्तभंगो । असण्णि० सत्तण्णं क० उक० जह० एग०,
विशेषार्थ -- क्षायिक सम्यक्त्वका उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है, इसलिए इसमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर कहा है । उपशमश्रेणिमें क्षायिक सम्यक्त्व भी होता है और इसमें चार घातिकर्मों के अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त बन जाता है, इसलिए क्षायिकसम्यक्त्वमें इन कर्मों के अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त कहा है । शेष कथन सुगम है ।
१३८. वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें सात कर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय है । इतनी विशेषता है कि चार घातिकर्मों के अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है । आयुकर्मका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है । उपशमसम्यग्दृष्टि जीवों में सात कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जवन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ।
विशेषार्थ - वेदकसम्यक्त्वमें चार घातिकमका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध मिध्यात्वके श्रभिमुख हुए जीवके अन्तिम समयमें होता है, इसलिए इनके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध के अन्तरकालका निषेध किया है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सर्वविशुद्ध अप्रमत्तसंयत जीवके होनेसे इसमें इन तीन कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धके अन्तरका निषेध किया है । उपशमसम्यक्त्वमें चार घातिकर्मोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध मिथ्यात्वके अभिमुख जीवके अन्तिम समयमें होता है और वेदनीय, नाम व गोत्रकर्मका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध उपशमश्रेणिमें सूक्ष्मसाम्पराय के अन्तिम समयमें होता है, इसलिए इन सातों कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धके अन्तरकालका निषेध किया है। तथा उपशम सम्यक्त्वमें उपशमश्रेणिकी अपेक्षा कमसे कम एक समय तक और अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त तक इनका बन्ध नहीं होता, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त कहा है।
१३६. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है | वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है ।
विशेषार्थ - सासादनसम्यक्त्वमें मिथ्यात्व के अभिमुख हुए जीवके अन्तिम समय में चार घ। कर्मोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध होता है, इसलिए इनके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धके अन्तरकालका निषेध किया है। किन्तु वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मका सर्वविशुद्ध जीवके उत्कृष्ट अनुभागबन्ध होता है, इसलिए इसमें इनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जधन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त कहा है। शेष कथन सुगम है ।
१४०. संज्ञी जीवों में पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके समान भङ्ग है। संज्ञी जीवोंमें सात कर्मों के
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