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________________ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे पत्थि अंतरं । अणु० जह• एग०, उक्क० अंतो० । आउ० [उक०] जह० एग०, उक्क० अंतो० । [अणु०] जह० एग०, उक्क० पगदिअंतरं । ओरालियका० मणजोगिभंगो। णवरि आउ० अणु० जह• एग०, उक० सत्तवाससहस्साणि सादि० । १२६. ओरालियमि० सत्तण्णं क० उक० अणु० णत्थि अंतरं। आउ० अपजत्तभंगो। एवं वेउब्वियमि०-आहारमि० । णवरि आहारमि० आउ० उक्क० अणु० णत्थि अंतरं । वेउव्विय० अट्टण्णं क० उक्क० जह० एग०, उक० अंतो० । अणु० जह. एग०, उक्क० बेसम० । एवं आहारका० । कम्मइ० सत्तण्णं क० उक्क० अणु० णत्थि अंतरं । एवं अणाहार। उत्कृष्ट और अनुकृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अनुत्कृष्ट अनु बन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अनुकृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरप्रकृतिबन्धके अन्तरके समान है। औदारिक काययोगी जीवोंमें मनोयोगी जीवोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि आयुकर्म के अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक सात हजार वर्ष है। विशेषार्थ-पाँच मनोयोगी और पाँच वचनयोगी जीवोंमें चार घातिकर्म और आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धके योग्य परिणाम एक समय और अन्तर्मुहूर्त के बाद होते हैं, इसलिए इनमें उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तरर्मुहूर्त कहा है। इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल स्पष्ट ही है। औदारिककाययोगी जीवोंमें आयुकर्मफे सिवा यह अन्तरकाल इसी प्रकार प्राप्त होता है । मात्र औदारिक काययोगका उत्कृष्ट काल कुछ कम बाईस हजार वर्ष है, इसलिए इसमें आयुकर्मके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर साधिक सात हजार वर्ष कहा है। काययोगी जीवोंमें चार घातिकर्मीका उत्कृष्ट अनुभागवन्ध एक समयके वाद इसलिए बन जाता है कि अन्य काययोगोंमें ऐसे परिणाम एक समयके बाद हो सकते हैं. अतः इनमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है। इनमें वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तरकाल उपशमश्रेणिकी अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त कहा है। शेष कथन सुगम है। १२६. औदारिक मिश्रकाययोगी जीवोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है । आयुकर्मका भङ्ग अपर्याप्तकोंके समान है। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें आयुकर्मके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है। वैकियिक काययोगी जीवोंमें आठ कौके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। इसी प्रकार आहारककाययोगी जीवोंके जानना चाहिए। कार्मणकाययोगी जीवोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है। इसी प्रकार अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए। विशेषार्थ---औदारिक मिश्रकाययोगमें सात कर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धके अन्तरकालका निषेध इसलिए किया है कि इसमें औदारिकमिश्रकाययोगके अन्तिम समयमें चार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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