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________________ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे अज० अणुक्कस्सभंगो। वेद०-णामा० जह० ओघं । अज० णाणावरणभंगो । एवं आहारकायजोगि०। णवरि गोद० जह० जह० एग०, उक्क० बेसमयं। कम्मइ० पंचण्णं क० जह० एग० । अज० जह० एग०, उक्क० तिण्णि समयं । वेद०-णामा० जह० अज० एग०, उक्क० तिण्णिसम० । एवं अणाहार० । १०८, इथिवे. धादि०४ जह० एग० उक्क० एग० । अज० जह० एग०, उक्क० पलिदोपमसदपुधत्तं । वेद०-णामा-गोदा० जह० एग०, उक्क० चत्तारि सम० । अज० णाणावरणभंगो। एवं पुरिस० । णवरि घादि०४ अज० जह० अंतो०, उक्क० सागरोवमसदपुधत्तं । अवगदवे० सत्तण्णं क० जह० एग०, अज० जह० एग०, उक्क० अंतो०। १०६. कोधादि०४ धादि०४ गोद० जह० जह० एग०, उक्क० सम० । अज० जह० एग०, उक्क० अंतो० । वेद०-णामा० अपजत्तभंगो। अजघन्य अनुभागबन्धका काल अनुत्कृष्टके समान है। वेदनीय और नामकर्मके जघन्य अनुभागवन्धका काल अोधके समान है। अजघन्य अनुभागबन्धका काल ज्ञानावरणके समान है । इसी प्रकार आहारककाययोगी जीवोंके जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनसें गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। कार्मणकाययोगी जीवोंमें पाँच कोंके जघन्य अनभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन समय है। वेदनीय और नामकर्मके जघन्य और अजघन्य अनभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन समय है।। * विशेषार्थ-इन पूर्वोक्त योगोंका काल और इनमें सात कर्मों के जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका स्वामित्व जान कर उक्त काल ले आना चाहिए। कोई विशेपता न होनेसे यहाँ हमने अलग-अलग खुलासा नहीं किया। १०८. स्त्रीवेदी जीवोंमें चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल और उत्कष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभाग बन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल सौ पल्प प्रथक्त्व प्रमाण है। वेदनीय,नाम और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागवन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल चार समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका काल ज्ञानावरण के समान है। इसी प्रकार पुरुषवेदी जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें चार घातिकर्मोंके अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्यकाल अन्तर्मुहूते है और उत्कृष्टकाल सौ सागर पृथक्त्व प्रमाण है । अपगतवेदी जीवोंमें सात कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल एक समय है। अजघन्य अनुभागबन्ध जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है । विशेषार्थ-स्त्रीवेदी जीवका जघन्यकाल एक समय है और पुरुपवेदी अन्तर्मुहूर्त है, इसलिए इनमें सात कर्मोंके अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्यकाल क्रमसे एक समय ४१ और अन्तर्मुहूर्त कहा है। शेष कथन सुगम है। १०६. क्रोधादि चार कषायवाले जीवोंमें चार घातिकर्म और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्यकाल और उत्कृष्टकाल एक समय है ।। तथा अजवन्य अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त हैं। वदनीय भार नाम कर्मका भंग अपर्याप्तकोंके समान है। Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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