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________________ अंतरपरूवणा ३६५ अज० ज० ए०, उ० अंतो० । अहक० ज० ज० अंतो०, उ. कायहिदी०। अज ओघं । इत्थि०--णवंस०--तिरिक्व०-एइंदि-पंचसंठा-पंचसंघ०-तिरिक्वाणु०-आदावुज्जो०-अप्पसत्थ०-थावर-दूभग-दुस्सर-अणादें-णीचा० ज० ज० ए०, उ० कायहि । अज० ज० ए०, उ. पणवण्णं पलिदो० देसू० । पुरिस०-हस्स-रदि० ज० णत्थि अंतरं । अज० सादभंगो । णिरयाणु० मणुसिभंगो । तिरिक्व०-मणुसायु० ज० अज० ज० ए०, उ० कायहिदी०। देवायु० ज० ज० ए०, उ० कायढि० । अज. ज० ए०, उ. अहा०वणं पलि. पुव्वकोडिपु० । णिरय-देवगदि-तिण्णिजादि[ वेउवि०- ] वेउवि०अंगो०-दोआणु०-सुहुम-अपज०-साधार० ज० ज० ए०, उ० कायहिदी। अज० ज० ए०, उ० पणवण्णं पलिदो० सादि० । मणुसगदिपंचग० ज० ज० ए०, उ० कायहिदी । अज० ज० ए०, उ० तिण्णिपलि० देसू० । आहारदुग० ज० अज० ज० अंतो०, उ० कायहिदी । तेजा०--क०--पसत्थवण्ण४-अगुरु०णिमि० ज० ज० एग०, उक्क० कायहिदी । अज० ज० ज० एग०, उक्क० बेसम०] यशःकीर्ति, अयशःकीर्ति और उच्चगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। आठ कषायोंके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है । अजघन्य अनुभागबन्धका अन्तर ओघके समान है। स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रियजाति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचपन पल्य है। पुरुषवेद, हास्य और रतिके जघन्य अनुभागबन्धका अन्तर नहीं है । अजघन्य अनुभागबन्धका अन्तर सातावेदनीयके समान है। नरकायुका भङ्ग मनुष्यिनियोंके समान है। तिर्यश्चायु और मनुष्यायुके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। देवायुके जवन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक अट्ठावन पल्य है। नरकगति, देवगति, तीन जाति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिक आङ्गोपाङ्ग, दो आनुपूर्वी, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक पचपन पल्य है। मनुष्यगतिपञ्चकके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। आहारकद्विकके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघु और निर्माणके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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