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________________ rawwwwwwwwwwwwwwe ३७२ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे अंतो०, उ० अद्धपोग्गल । अज० ज० ए०, उ० तेवहिसागरोवमसदं । मणुसग०मणुसाणु०-उच्चा० ज० अज० ज० ए०, उ० असंखेंजा लोगा । चदुजादि-थावरादि०४ ज० ज० ए०, उ० असंखेंज्जा लोगा। अज० ज० ए०, उ० पंचासीदिसागरोवमसदं । पंचिंदि०--तेजा०-क०-पसत्यवण्ण०४-अगु०३-तस०४-णिमि० ज० ज० ए०, उ० अणंतका० । अज० ज० ए०, उ० अंतो० । ओरालि०-ओरालि० अंगो० ज० ज० ए०, उ० अणंतकाल । अज० ज० ए०, उ० तिणिपलि० सादि०। आहारदुग० ज० अज० ज० अंतो०, उ० अद्धपोग्गल० । पंचसंठा०-पंचसंघ०-अप्पस०-भगदुस्सर-अणार्दै० ज० ज० ए०, उ० असंखेंजा लोगा। अज० अणुभंगो । वज्जरि० ज० ज० ए०, उ० असंखेंज्जा लोगा। अज० ज० ए०, उ० तिण्णिपलि० सादि० । आदाव० ज० ज० ए०, उ० अणंतका० । अज० ज० ए०, उ० पंचासीदिसागरोवमसदं । उज्जो० ज० ज० ए०, उ०. अणंतका० । अज० ज० ए०, उ० तेवहिअन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सौ सागर पृथक्त्वप्रमाण है। तिर्यश्चगति और तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वीके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्महर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर एकसौ त्रेसठ सागर है। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। चार जाति और स्थावर आदि चारके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय हे अरि उत्कृष्ट अन्तर एकसौ पचासी सागर है। पश्चन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, सचतुष्क और निर्माणके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । औदारिकशरीर और औदारिक आङ्गोपाङ्गके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तीन पल्य है। आहारकद्विकके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अधपुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। पाँच संस्थान, पाँच सैहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेयके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। अजघन्य अनुभागबन्धका भङ्ग अनुत्कृष्टके समान है। वज्रर्षभनाराचसंहननक जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तीन पल्य है। आतपके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर एकसौ पचासी सागर है। उद्योतके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर एकसौ त्रेसठ १. ता. प्रतौ थावरादिध ज० ए० इति पाठः । २. प्रा. प्रतौ अंगो० ज० ज० ए, उ० तिएिण इति पाठः । ३. ता० प्रा० प्रत्योः साग पंचसदं इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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