SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 396
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्तरपरूवरणा ३७१ ० ५६४. जह० पदं । दुवि० ओघे० आदे० । ओघे० पंचणा० दंसणा ० चदुसंज०पंचणोक० -- अप्पसत्थ०४ - उप० - तित्थ० - पंचंत० ज० अणुभागं० केवचि ० १ णत्थि अंतरं । अज० ज० एग०, णिद्दा पचला० ज० तो ० उ० अंतो० । श्रीणगिद्धि०३मिच्छ० - अनंताणु ०४ ज० ज० अंतो०, उ० अद्धपोंगल० । अज० ज० अंतो०, उ० daraiso देसू० । सादासाद० - समचदु० -पसत्थ० - थिराथिर - सुभासुभ-सुभग-सुस्सरआदें.. १० जस० - अजस० ज० ज० ए०, उ० असंखेज्जा लोगा । अज० ज० ए०, अंतो० । अट्ठक० ज० ज० तो ० उ० अद्धपोंगल ० । अज० ज० अंतो०, उ० पुव्वकोडी देनू ० । इत्थिवे० ज० ज० ए०, उ० अनंतका० । अज० ज० ए०, उ० बेछा ० सू० । वुंस० ज० इत्थि० भंगो । अज० अणु० भंगो । अरदि-सोग० ज० ज० ए०, उ० अद्धपोंगल० । अज० ज० ए०, उ० अंतो० । तिण्णिआयु० - वेडव्वि० छ० ज० अ० ज० ए०, उ० अनंतका० । तिरिक्खाउ० ज० ज० ए०, उ० असं खेंज्जा लोगा । अज० ज० ए०, उ० सागरोवमसदपुधत्तं । तिरिक्खग ० - तिरिक्खाणु ० ज० ज० उ० ५६४. जघन्यका प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, पाँच नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, तीर्थङ्कर और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका कितना अन्तर है ? अन्तर नहीं है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है, निद्रा और प्रचलाका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । स्त्यानगृद्धिन्त्रिक, मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त हैं और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छियासठ सागर है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, समचतुरस्त्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशः कीर्ति और अयश:कीर्तिके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । आठ कषायों के जधन्य अनुबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है। स्त्रीवेदके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छियासठ सागर है । नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागबन्धका भङ्ग स्त्रीवेद के समान है। अजघन्य अनुभागबन्धका भङ्ग अनुत्कृष्टके समान है। अरति और शोकके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन् है । तीन आयु और वैक्रियिक छहके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है । तिर्यवायुके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य १. ता० प्रतौ पंचंत० अणुभाग इति पाठः । २. प्रा० प्रतौ प्रज० ज० सागरो० इति पाठः ! ३. ता० प्रतौ पुधरां । तिरिक्खाणु० इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy