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________________ सामित्तपरूवणा मिच्छादि० णियमा उक० संकिलि० उक० वट्ट० । वेदणी० - आयुग०-णामा-गोदाणं इत्थभंगो । १३ ३०. अवगद० घादि०४ उक० अणुभा० कस्स० १ अण्णद० उवसम० परिवदमाणस्स चरिमे उक्क० अणुभा० वट्ट० । वेदणी० णामा- गो० ओघं । ३१. कोध-माण - मायासु घादि०४ उक्क० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० चदुगदि० पंचिंदि० सण्णि० मिच्छादि० सागार-जा० णियमा उक्क० संकिलि० उक्क० वट्ट० । साणं सगभंगो | ३२. मदि० - सुद० घादि०४ उक्क० अणुभा० कस्स ० १ अण्ण० चदुर्गादि० पंचिंदि० सण्णि० मिच्छादि० सागार-जा० णियमा उक्क० संकिलि० वट्ट० । वेद०णामा-गो० उक्क० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० मणुस० संजमाभिमुहुस्स सव्वविसु० चरिमे उक्क० अणुभा० वट्ट० । आयु० उक्क० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० तिरिक्ख- मणुस ० पंचिदि० सण्णि० सागार-जा० तप्पाऔग्गसंकिलि० उक्क० वट्ट० । एवं विभंगे । ३३. आभिणि० - सुद० - ओधि० घादि०४ उक्क० अणुभा० कस्स० ! अण्णद० चदुगदि० असंजदसम्मा० सव्वाहि पज्ज० सागार जा० उक्क० मिच्छत्ताभिमुह० चरिमे उक्क० वट्ट० । वेदणी०. आयुग० णामा - गो० ओघभंगो । एवं ओधिदंस ० - सम्मादि० । नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर तीन गतिका मिध्यादृष्टि जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकर्मका भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है । 1 ३०. अवगतवेदी जीवोंमें चार घाति कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर गिरनेवाला उपशामक जीव उक्त कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है | वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मका भङ्ग ओधके समान है । ३१. क्रोध, मान और मायाकषायवाले जीवोंमें चार घातिकर्म के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? संज्ञी, मिथ्यादृष्टि, साकार-जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर चार गतिका पंचेन्द्रिय जीव उक्त कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । शेषकमका भङ्ग नपुंसकवेदी जीवोंके समान है । ३२. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? संज्ञी, मिध्यादृष्टि, साकार - जागृत और नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त अन्यतर चार गतिका पंचेन्द्रिय जीव उक्त कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? संयम अभिमुख, सर्वविशुद्ध और अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर मनुष्य उक्त कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? पंचेन्द्रिय, संज्ञी, साकार - जागृत तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार विभङ्गज्ञानी जीवोंमें जानना चाहिए। ३३. अभिनिवोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, और अवधिज्ञानी जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सव पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार जागृत, उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, मिध्यात्वके भिमुख और अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागवन्धमें अवस्थित, अन्यतर चार गतिका असंयत सम्यग्दृष्टि जीव उक्त कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकर्मका भङ्ग For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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