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________________ ३१२ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे ५५१. सासणे पंचणा०--णवदंसणा०-सोलसक०-भय-दु०-तिगदि०-पंचिंदि०चदुसरीर०-दोअंगो०--पसस्थापसत्थव०४-तिण्णिआणु०-अगु०४-तस०४-णिमि०-- णीचा० पंचंत० ज० एग० । अज० ज० एग०, उ० छावलिगाओ। सादासाद०तिण्णिआयु०--चदुसंठा०--पंचसंघ०--अप्पसत्थ०--थिरादितिण्णियुग० -- दूभग --दुस्सरअणादें जह० ओघं । अज० ज० एग०, उक्क० अंतो० । इत्थि०--अरदि-सोग०उज्जो० ज० ज० एग०, उ० बेसम० । अज० ज० एग०, उ. अंतो०। पुरिस०हस्स-रदि० ज० एग० । अज० इत्थिभंगो । समचदु०-पसत्थ०-सुभग-सुस्सर-आदेंउच्चा० ज० ओघं । अज० ज० एग०, उ० छावलिगाओ। ५५२. सम्मामिच्छे पंचणाणावरणादिधुविगाणं ज० एग० । अज० ज० उ० चतुष्क और आहारकद्विकका भङ्ग जानना चाहिए। विशेषार्थ--प्रथम दण्डकमें कही गई प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय होनेसे इनके अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त कहा है, क्योंकि उपशमसम्यक्त्वका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। शेष कथन स्पष्ट ही है। ५५१. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, तीन गति, पञ्चन्द्रियजाति, चार शरीर, दो आङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तीन आनुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल छह प्रावलि है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, तीन आयु, चार संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, स्थिर आदि तीन युगल, दुभंग, दुस्वर और अनादेयके जघन्य अनुभागबन्धका भङ्ग ओघके समान है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। स्त्रीवेद, अरति, शोक और उद्योतके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्त रुषवेद, हास्य और रतिके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका भङ्ग स्त्रीवेदके समान है। समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका भङ्ग ओघके समान है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल छह आवलि है। विशेषार्थ--सासादनगुणस्थानका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल छह श्रावलि होनेसे यहाँ प्रथम दण्डकमें कही गई प्रकृतियोंके अजयन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल छह आवलि कहा है। यहाँ सातावेदनीय आदिके अजघन्य अनुभागबन्धका उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त कहनेका कारण इनका अध्रुवबन्धिनी प्रकृतियाँ होना है। शेष कथन सुगम है। ५५२. सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें पाँच ज्ञानावरणादि ध्र वबन्धिनी प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और १. भा० प्रतौ चदुसंठा० चदुसंघ० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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