SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाबंध अणुभागबंधाहियारे ५२६. कायजोगी पंचणा० णवदंसणा ० - मिच्छत्त- सोलसक० -भय-दु०--अप्प - सत्थ०४ - उप०-पंचंत० ज० एग० । अज० ज० एग०, उ० अनंतका० । सादादीनं ज० ज० एग०, उ० चत्तारिसम० । अज० अणुक्कस्तभंगो । इत्थ० - णवुंस० -अरदिसोग - पंचिंदि ० - वेडव्वि० - दोअंगो० पर ० उस्सा ० - आदाउज्जो ० -तस०४ ज० ज० एग०, उ० बेसम० । अज० ज० एग०, उक्क० अंतो० । पुरिस०० -- हस्स -- रदि -- आहारदुगतित्थ० ज० एग० । अज० ज० एग०, उ० अंतो० । ओरालि० - तेजा क० -पसत्थ०४अगु० - णिमि० ज० ज० एग०, उ० बेसम० । अज० ज० एग०, उक्क० अनंतकालं० । तिरिक्खगदि ० ३ ओघं । । २८६ दो समय तक बन जाता है, इसलिए उनके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय कहा है । अजघन्य अनुभागबन्धका काल प्रथम दण्डकके समान घटित कर लेना चाहिए। सातादिक तीसरे दण्डकमें कही गई प्रकृतियोंका जघन्य अनुभागबन्ध परिवर्तमान मध्यम परिणामों से होता है, इसलिए इनके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल चार समय कहा है । इन प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका काल स्त्रीवेदके समान है। इसका यही है कि जिस प्रकार स्त्रीवेदके अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त घटित करके बतलाया है, उसी प्रकार यहाँ भी घटित कर लेना चाहिए । ५२६. काययोगी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मिध्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, प्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट अनन्तकाल है । सातावेदनीय आदिके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है । अजघन्य अनुभागबन्धका काल अनुत्कृष्टके समान है । स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, अरति, शोक, पञ्च ेन्द्रियजाति, वैक्रियिकशरीर, दो आङ्गोपाङ्ग, परघात, उच्छ्वास, श्रातप, उद्योत और त्रसचतुष्कके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । पुरुषवेद, हास्य, रति, आहारकद्विक और तीर्थङ्कर के जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । दारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघु और निर्माणके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट अनन्त काल है । तिर्यञ्चगतित्रिकके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका काल ओघ के समान है । विशेषार्थ - यहाँ आगेकी मार्गणाओं में कालका बोध करनेके लिये तीन बातोंका स्पष्टीकरण कर देना आवश्यक है । प्रथम - जिन मार्गाओं में जिन प्रकृतियोंका जघन्य अनुभागबन्ध क्षपकश्रेणिमें या आगे तत्प्रायोग्य विशुद्धगुरणको प्राप्त करनेके सन्मुख हुए या नीचेके तत्प्रायोग्य संक्लेशको प्राप्त करनेके सन्मुख हुए जीवके अन्तिम समयमें होता है, उनके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय होता है, इसलिए उनके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है । द्वितीय - जिन प्रकृतियों का जघन्य अनुभागबन्ध परिवर्तमान मध्यम परिणामों से होता है, उनके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल चार समय होता है । उदाहरणार्थ - यहाँ दूसरे दण्डकमें कही गई साता आदि प्रकृतियोंका जघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy