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________________ सामित्तपरूवणा २२३ णेरइ० सम्मादि० मिच्छादि० परिय०मज्झिम० । इत्थि०-णस. जह० कस्स० ? अण्ण० देव० णेरइ० तप्पा०विसु० । अरदि०-सोग० ज० क०१ अण्ण० देवस्स णेरइ० सम्मादि० सागा० तप्पा०विसु०। दो आयु० ज० क. ? अण्ण० देव० णेरइ० जहणियाए पज्जत्तगणिवत्तीए णिव्वत्त० परिय०मज्झिम.। मणुस.. छस्संठा०-छस्संघ०-मणुसाणु०-दोविहा०-तिषिणयुग०-उच्चा० ज० क० १ अण्ण० देव० णेरइ० मिच्छा० परिय०मज्झिम० । तिरिक्ख०-तिरिक्खाणु०-णीचा. जह• कस्स० १ अण्ण० णेरइ० सत्तमाए पुढवीए मिच्छा० सागा० सव्ववि० सम्मत्ताभिमुह० जह० वट्ट । एइंदि०-यावर० ज० क० १ अण्ण० देव० ईसाण. परि०मज्झिम० । पंचिं० ओरालि० अंगो०-तस० ज० के०१ अण्ण० सणकुमार उवरिमदेव०सव्वणेरइ० मिच्छादि. सव्वसंकि० । ओरालि०-तेजा.-क०--पसत्थवण्ण०४-अगु०३-बादर-पज्जत्त-पचे०णिमि० ज० क० ? अण्ण० देव० णेरइ० मिच्छा० सव्वसंकि० । आदाव० ज० क० ? अण्ण० ईसाणंतदेव० मिच्छादि० सव्वसंकि । उज्जो० ज० क.? अण्ण. देव. अन्यतर मिथ्यादृष्टि देव और नारकी उक्त प्रकृतियों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। सातादि चार युगलोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि देव और नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध अन्यतर देव और नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। अरति और शोकके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और तत्प्रायोग्य विशुद्ध अन्यतर सम्यग्दृष्टि देव और नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। दो आयुओंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? जघन्य पर्याप्त निवृत्तिसे निवृत्तमान और परिवर्तमान मध्यम परिणा वाला अन्यतर देव और नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। मनुष्यगति, छह संस्थान, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति, मध्यके सुभगादिक तीन युगल और उन गोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि देव और नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तिर्यञ्चगति, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकारजागृत, सर्वविशुद्ध, सम्यक्त्वके अभिमुख और जघन्य अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर सातवीं पृथिवीका मिथ्यादृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। एकेन्द्रियजाति और स्थावरके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर ऐशान कल्पका देव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। पञ्चन्द्रियजाति, औदारिक आङ्गोपाङ्ग और उसके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर मिध्यादृष्टि सानत्कुमारसे ऊपरका देव और सब नरकोंका नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभाग बन्धका स्वामी है। औदारिकशरीर. तेजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है? सर्वसंक्लेशयुक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि देव और नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। आतपके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्वसंक्लेशयुक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि ऐशान कल्प तकका देव पातपके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। उद्योतके जघन्य अनुभागबन्धका १. ता. प्रतौ तस. उ० (जह) क० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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