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________________ सामित्तपरूवणा १६४ ४२३. इत्थिवे. पंचणा०-णवदंसणा०-असादा०-मिच्छत्त-सोलसक०-पंचणोक०हुंड०-अप्पसत्थ०४-उप०-अथिरादिछ०-णीचागो०-पंचंत० उक्क० कस्स०१अण्ण तिगदि० सण्णि० सागा० णिय० उक्क० संकिलि० उक्क० वट्ट० । सादा०-जस०-उच्चा० उक्क० कस्स० १ अण्ण० खवग० अणियट्टिचरिमे अणुभाग० वट्ट० । इत्थि०-पुरिस०-हस्सरदि-चदुसंठा०-पंचसंघ० उक्क० कस्स० १ अण्ण० तिगदि० सागा. तप्पा०संकिलि. उक्क० वट्ट० । आउचदुक्कं ओघं । णिरयगदि-णिरयाणु०-अप्पस० उक्क. कस्स० ? अण्ण तिरिक्ख० मणुस० सागा० सव्वसंकिलि० उक्क० वट्ट । तिरिक्वग०-एइंदि०तिरिक्वाणु०-थावर० उक्क० कस्स० १ अण्ण० ईसाणंतदेवीए मिच्छादि० सागा०णिय० उक्क० संकिलि०। मणुसगदिपंचगस्स उक्क० कस्स० ? अण्ण० देवीए सम्मादि० सागा. सव्ववि० । देवगदियादीणं ओघं । तिण्णिजादि-मुहुम-अपज्ज०-साधार० उक० कस्स०? अण्ण. तिरिक्ख० मणुस० सागा. संकि० उक्क० वट्ट। आदाउज्जो० उक्क० कस्स० ? अण्ण० तिगदि० सागा० तप्पाऑग्गविसु० उक्क० वट्ट । साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर तीन गतिका जीव तीर्थकर प्रकृतिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। ४२३. स्त्रीवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकषाय, हुण्डसंस्थान, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, अस्थिर आदि छह, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लिष्ट और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर तीन गतिका संज्ञी जीव उक्त प्रकृतिर उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। सातावेदनीय, यश कीर्ति और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? अन्तिम अनुभागकाण्डकमें विद्यमान अन्यतर अनिवृत्ति क्षपक उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, चार संस्थान और पाँच संहननके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट और उस्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर तीन गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । चार आयुअोंका भङ्ग ओघके समान है। नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, और अप्रशस्त विहायोगतिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्वसक्लिष्ट और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। तिर्यश्चगति, एकेन्द्रियजाति, तियंञ्चगत्यानपूर्वी और स्थावरके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, नियमसे सर्वसंक्लिष्ट और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाली अन्यतर ऐशान कल्पतक की मिथ्यादृष्टि देवी उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धकी स्वामी है। मनुष्यगति पञ्चकके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाली अन्यतर सम्यग्दृष्टि देवी मनुष्यगतिपश्चककी उत्कृष्ट अनुभागबन्धकी स्वामी है। देवगति आदिक ओघमें कही गई २६ प्रकृतियांका भङ्ग घिक समान है। तीन जाति, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, नियमसे संक्लिष्ट और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। आतप और उद्योतके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? १. ता. प्रतौ शोधं । णिरयाणु० इति पाठः । २. वा. प्रा० प्रत्योः अप्पस दुस्सर° उक० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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