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________________ १६२ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे उक्क० १ अण्ण० सण्णि. सागा० तप्पा०संकि० उक्क० वट्ट० । तिरिक्ख-मणुसाउ०. आदाउञ्जो० उक्क० कस्स० ? अण्ण सण्णि. सागा. तप्पा०विसु० उक्क०' वट्ट० । एवं मणुसअपज-सव्वविगलिंदि०-पंचिंदि०-तसअपज०-पुढवि०-आउ०-वणप्फदिणियोद० बादर०पत्तेगं च'। ४१३. मणुसेसु खविगाणं देवाउगं च ओघं । सेसाणं पंचिंदियतिरिक्खमंगो। ४१४. देवेसु पंचणा०-णवदंसणा०-असादा०-मिच्छ०-सोलसक०-पंचणोक.. तिरिक्ख०-हुंड०-अप्पसत्थवण्ण०४-तिरिक्खाणु०-उप०अथिरादिपंच-णीचा०-पंचंत० उक्क० कस्स० १ अण्णद० मिच्छा० सागा. णियमा उक्क० संकिलि० उक० वट्ट० । सादा०-मणुस-पंचिंदि०-ओरालि०-तेजा०-क०-समचदु०-ओरालि०अंगो०-बजरि०. पसत्थवण्ण०४-मणुसाणु०-अगु०३-पसस्थ०-तस०४-थिरादिछ०-णिमि०-तित्थय०उच्चा० उक्क० अणु० कस्स० ? अण्ण० सम्मा० सागा. सव्ववि० उक० वट्ट । इत्थिा -पुरिस०-हस्स-रदि-चदुसंठा०-चदुसंघ० उक० कस्स०? अण्ण० मिच्छा. सागा. तप्पा०संकिलि० उक० वट्ट० । तिरिक्खायु०-उजो० उक० कस्स ? अण्ण० मिच्छा० दुःस्वरके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर संज्ञी जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु, आतप और उद्योतके उत्कृष्ट अनुभाग बन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर संज्ञी जीव उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार मनुष्यअपर्याप्त, सवविकलेन्द्रिय, पश्चेन्द्रियअपर्याप्त, जसअपर्याप्त, पृथिवीकायिक, जलकायिक, वनस्पतिकायिक, निगोद और बादरप्रत्येकवनस्पतिकायिक जीवोंके जानना चाहिये। ४१३. मनुष्योंमें क्षपक प्रकृतियोंका और देवायुका भङ्ग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चोंके समान है। ४१४. देवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकषाय, तिर्यञ्चगति,हुण्डसस्थान, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, उपघात, अस्थिरआदि पाँच, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संतशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। सातावेदनीय, मनुष्यगति, पश्चेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वऋषभ नाराचसंहनन, प्रशस्त वर्णचतुष्क, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुत्रिक, प्रशस्तविहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर आदि छह, निर्माण, तीर्थङ्कर और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर सम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, चार संस्थान और चार संहननके उत्कृष्ट अनभागवन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, तत्प्रायोग्यसंक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका १ ता. प्रतौ साग० (गा) तप्पा. विसु. उ. विसु० उ० इति पाठः। २ ता. प्रतौ पत्तेणं (य) च इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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