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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे
४०९. एदेण अट्ठपदेण सामित्तं दुविधं जह० उक्क० । उक्कस्सए पगदं । दुवि०ओषे० आदे● | ओघे० पंचणा० णवदंसणा० - असादा०-मिच्छ० सोलसक० - पंचणोक० हुंड संठा० - अप्पसत्थवण्ण ०४ - उप० अप्पसत्थ० -अथिरादिछ० - णीचा० - पंचंत० उकस्सओ अणुभागबंधी कस्स ० १ अण्ण० चदुगदियस्स पंचिदियस्स सण्णि० मिच्छादिडिस्स सव्वाहि पत्तीहि पजत्तगदस्स सागा० जा ० णियमा उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स उकस्सए अणुभागबंधे वट्ट० । सादावे ० जस० उच्चा० उक्कस्सअणुभा० कस्स० १ अण्ण० खवग ० हमसंप० चरिमे उक० अणु० वट्ट० । इत्थि० - पुरिस० हस्स र दि-चदुसंठा ० चदुसंघ० मदियावर०भंगो | णवरि तप्पाऔग्गसंकिलि० । णिरयाउग-विणिजादि सुहुम-अपज, ०साधार० उक्क० अणु ० कस्स० १ अण्णदरस्स मणुसस्स वा पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीयस्स वा सव्वाहि पजत्ती हि० सागा० तप्पाऔग्गसंकिलि० उक्क० अणु० वट्ट० । तिरिक्ख - मणुसाउ० तं चैव । णवरि तप्पाऔग्गविसुद्ध उक्क० अणु० वट्ट० | देवाउ० उक्क० अणु० कस्स० १ अण्ण० अप्पमत्त सांगा० तप्पाऔगविसु० उक्क० अणु० वट्टमाणगस्स । णिरयग०- णिरयाणुपु० उक्क० अणु० कस्स० १ अण्ण० मणुसस्स वा पंचिंदियतिरिखखजोणिणी० ० वा सण्णि० सव्वाहि पज० सागा० - जागा० निय० उक्कस्स ० संकि० उक्क० अणुभा० वट्ट० । तिरिक्खग दि- असंपत्त० तिरिक्खाणु० उक्क० अणु ०
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४०. इस अर्थपदके अनुसार स्वामित्व दो प्रकारका है - जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । ओघ से पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकषाय, हुण्डसंस्थान, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, अप्रशस्त विहायोगति, अस्थिर आदि छह, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? पचेन्द्रिय, संज्ञी, मिध्यादृष्टि, सव पर्याप्तियोंके द्वारा पर्याप्तिको प्राप्त हुआ, साकार जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर चार गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । सातावेदनीय, यशः कीर्ति और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? क्षपक सूक्ष्मसाम्पराय संयत और अन्तिम समय में उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, चार संस्थान और चार संहननका भङ्ग मतिज्ञानावरणके समान है । इतनी विशेषता है कि यह तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाले जीवके कहना चाहिये। नरकायु, तीन जाति, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सब पयाप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, साकार जागृत, तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला, अन्यतर मनुष्य या संज्ञीपचेन्द्रियतिर्यच उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । तिर्यवायु और मनुष्यायुका वही भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि यहाँ तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणाम वाला और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला जीव कहना चाहिये । देवायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर अप्रमत्तसंयत जीव देवायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । नरकगति और नरकगत्यानुपूर्वी के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? संज्ञी सब पर्याप्तियों से पर्याप्त हुआ, साकार जागृत नियमसे उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर मनुष्य या पचेन्द्रियतिर्यच उक्त दो प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है ।
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