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________________ महाधे अणुभागबंधाहियारे ३७९. समयपरूवणदाए चदुसमहयाणि अणुभागबंधज्झवसाणट्ठाणाणि असंखेज्जा लोगा । एवं पंचसमइ० छस्समइ० सत्तसमइ० अट्ठसमइ० उवरि सत्तसमइ० छस्सम ० पंचसमइ० चदुसमइ० तिष्णिसमइ० बिसमइ० । १७४ ३८०. एत्थ अप्पा बहुगं । सव्वत्थोवाणि अट्ठसमइयाणि अणुभागबंधन्द्रवसाणडोणाणि | दो वि पासेसु सत्तसमइगाणि अणुभागबंधज्झमाणद्वाणाणि [ दो वि तुल्लाणि] असंखेज्जगुणाणि । दो वि पासेसु छस्समह० अणुभा० बंधज्झ० असं० गु० | दो वि पासेसु पंचसमइ० अणु०बंधज्झ० असं० गु० । एवं चद्रसमह उवरि तिसमह० बिसमइ० अणु ० बंधझ० असंखेज्जगुणाणि । ३८१. सुदुम अगणिकाइया पवेसेण असंखेज्जा लोगा । अगणिकाइया असंखेज्जगु० | कायट्ठि० असंखेज्जग० । श्रणुभागबंधज्झवसाणट्टाणाणि असंखेज्जगुणाणि । ३८२. वड्डि परूवणदाए [ अस्थि अनंतभागवड्डि-हाणी असंखेज्जभागवड्डि-हाणी ३७९. समयप्ररूपणा की अपेक्षा चार समयवाले अनुभागचन्धाध्यवसान स्थान असंख्यात लोकप्रमाण हैं। इसी प्रकार पाँच समयवाले, छह समयवाले, सात समयवाले और आठ समयवाले तथा इनके आगे सात समयवाले, छह समयवाले, पाँच समयवाले, चार समयवाले, तीन समयवाले और दो समयवाले अनुभागवन्धाध्यवसान स्थान जानने चाहिए । विशेषार्थ - जघन्य अनुभागबन्धस्थानोंसे लेकर उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थान तक ये जो असंख्यात लोकप्रमाण अनुभागबन्धस्थान हैं, इन्हें एक पंक्ति में स्थापित कर देखने पर उनमें से जो अधस्तन असंख्यात लोकप्रमाण स्थान हैं वे चार समयवाले हैं। उनसे आगे के असंख्यात लोकप्रमाण स्थान पाँच समयवाले हैं । इसी प्रकार दो समयवाले असंख्यात लोकप्रमाण उत्कृष्ट स्थानोंके प्राप्त होने तक जानना चाहिए। यह इनका उत्कृष्ट बन्धकाल कहा है । जवन्य बन्धकाल सबका एक समय है । ' ३८०. यहाँ अल्पबहुत्व है - आठ समयवाले अनुभागवन्धाध्यवसान स्थान सबसे थोड़े हैं। इनसे दोनों ही पावों में सात समयवाले अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान परस्पर समान होते हुए श्रसंख्यातगुणे हैं । इनसे दोनों ही पावों में छह समयवाले अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान परस्पर समान होते हुए असंख्यातगुणे हैं। इनसे दोनों ही पार्श्वे में पाँच समयवाले अनुभागवन्धाध्यवसान स्थान परस्पर समान होते हुए असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार चार समयवाले, तथा आगे तीन समयवाले और दो समय वाले अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान उत्तरोत्तर असंख्यातगुणे हैं । ३८१. सूक्ष्म अग्निकायिक जीव प्रवेशकी अपेक्षा असंख्यात लोकप्रमाण हैं । इनसे अमि. कायिक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे इन्हींकी कार्यस्थिति असंख्यातगुणी है। इनसे अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं । विशेषार्थ - यहाँ आठ आदि समयवाले अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानोंका अल्पबहुत्व देने के बाद यह अल्पबहुत्व देनेका प्रथम कारण तो यह है कि इन आठ आदि समयवाले अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानोंके अल्पबहुत्वमें गुणकार राशि अमिकायिक जीवोंकी कायस्थित ली गई है। दूसरे ये अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान श्रमिकायिक जीवोंकी कार्यस्थिति से भी असंख्यातगुणे हैं, यह बतलाना भी इस अल्पबहुत्वका प्रयोजन है । ३८२. वृद्धिप्ररूपणाकी अपेक्षा अनन्तभागवृद्धि-हानि, असंख्यात भागवृद्धि-हानि, संख्यात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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