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________________ १४८ महाबंधे अणुभागवंधाहियारे तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? अण्ण. यो तप्पाओग्गउक्क • अणु बंध० सागारक्खएण पडिभग्गो तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठाणं। आउ० ओघं । असंजद० घादि०४ ओघं । वेद०-णामा०-गोद० उक्क० वड्डी कस्स० १ अण्ण. मणुसस्स सम्मादि० सागार० सव्वविसुद्ध० संजमाभिमुह० उक्क० अणु० वट्ट० तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी अवट्ठाणं च मदि०भंगो । आउ० णqसगभंगो। ३२४. किण्ण-णील-काऊ० णिरयभंगो। आउ० ओधभंगो। तेउ०' घादि०४ देवभंगो। वेद०-णामा०-गोद० उक्क० वड्डी कस्स० ? अण्ण. अप्पमत्त० सागार० सव्वविसु० उक० अणु० वट्ट० तस्स उक्क० वड्डी । उक० हाणी कस्स ? यो उक० अणु० बंधमाणो मदो देवो जादो तस्स उक० हाणी अवट्ठाणं च । आउगं च ओघं । एवं पम्माए । सुक्काए घादि०४ आणदभंगो । सेसं ओघभंगो। ३२५. अब्भव० घादि०४ ओघं । वेद०-णामा०-गोद० उक्क० वड्डी कस्स० ? यो जहण्णादो विसोधीदो उक्कस्सयं विसोधि गदो तदो उक० अणु० पबंधो तस्स उक० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? यो उक्क० अणु० बंधमाणो सागारक्खएण पडि० तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवठ्ठाणं । आउ० मदि०भंगो । साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभग्नहो, तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागबन्ध करता है,वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है तथा उसीके तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। आयुकर्मका भंग ओघके समान है। असंयत जीवोंमें चार घातिकर्मोंका भङ्ग ओघके समान है। वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो सम्यग्दृष्टि साकार जागृत सर्वविशुद्ध और संयमके अभिमुख अन्यतर मनुष्य उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करता है,वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानि और अवस्थानका भंग मत्यज्ञानी जीवोंके समान है। आयुर्मका भंग नपुंसकवेदी जीवोंके समान है। ३२४. कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावाले जीवोंमें नारकियोंके समान भंग है। आयुकर्मका भंग ओघके समान है। पीत लेश्यावाले जीवोंमें चार घातिकर्मोंका भंग देवोंके समान है। वेदनीय नाम और गोत्रकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर अप्रमत्त साकार जागृत और सर्वविशुद्ध जीव उत्कृष्ट अनुभागबन्ध कर रहा है, वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव मरा और देव हो गया,वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है, तथा इसीके उत्कृष्ट अवस्थान होता है। आयुकर्मका भंग ओघके समान है। इसी प्रकार पद्मलेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिए। शुक्ललेश्याषाले जीवोंमें चार घातिकर्मोंका भंग आनत कल्पके समान है। शेष कर्मोंका भंग ओघके समान है। ३२५. अभव्य जीवों में चार घातिकर्मोंका भंग ओघके समान है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो जघन्य विशुद्धिसे उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त होकर उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करता है, वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उकृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभन्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागबन्ध करता है, वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है, तथा उसीके तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। आयुकर्मका भंग मत्यज्ञानी जीवोंके समान है। , ता.भा. प्रत्योः भाउ० पजत्तभंगो । उक्क. घादि. इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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