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________________ पदणिक्खवे सामित १४७ णवरि खइगे घादि०४ वड्डी सत्थाणे कादव्वं । मणपञ्जवे घादि०४ ओधिभंगो। णवरि.असंजमाभिमुहस्स । सेसं मणुसि भंगो । एवं संजद-सामाइ०-छेदोवट्ठावणा० । णवरि मिच्छाभिमुहस्स कादव्वं । ___३२२. परिहार० घादि०४ उक्क० वड्डी कस्स० ? अण्ण० सागा० उक्क० संकिले० सामाइ०-छेदो०भिमुहस्स चरिमे उक्क० अणु०बंधे वट्ट० तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० १ अण्ण० पमत्त० सागा. जो तप्पाओग्गजह० पडिदो तस्स उक० हाणी। तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठाणं । वेद०-णामा०-गोद० उक० वड्डी कस्स० १ अण्ण० अप्पमत्त० सम्वविसुद्ध० चरिमे उक० अणु० वट्ट. तस्स उक्क० वड्डी । उक० हाणी कस्स० १ अण्ण० यो उक्कस्सिगादो विसोधीदो पडिभग्गो सागारक्खएण तप्पाओग्गजह० पदिदो तस्स उक्क हाणी । तस्सेव से काले उक० अवट्ठाणं । आउ० ओघं । ३२३. संजदासंजदे धादि०४ वड्डी आभिणिभंगो। उक्क० हाणी कस्स० १ यो तप्पाओग्गउक्क० अणु० बंधमाणो सागारक्खएण पडिभग्गो तप्पाओग्गजह० पडिदो [तस्स] उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठाणं । वेद०-णामा०-गोद० उक्क० वड्डी कस्स.? अण्ण. सागार-जागा० सव्वविसु० संजमाभिमुह० चरिमे उक० अणु० वट्ट. घातिकर्मों की वृद्धि स्वस्थानमें कहना चाहिए। मनःपर्ययज्ञानी जीवोंमें चार घातिकर्मोंका भंग अवधिज्ञानी जीवों के समान है। इतनी विशेषता है कि यह असंयमके अभिमुख हुए जीवके कहना चाहिए। शेष भङ्ग मनुष्यनियोंके समान है। इसी प्रकार संयत, सामायिक संयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें मिथ्यात्वके अभिमुख हुए जीवके कहना चाहिए। ३२२. परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंमें चार घातिकोंकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो साकार उपयोगवाला उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त अन्यतर जीव सामायिक और छेदोपस्थापनासंयमके अभिमुख होकर अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित है, वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? साकार उपयोगवाला जो अन्यतर प्रमत्तसंयत जीव तत्प्रायोग्य अनुभागबन्ध करता है, वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है और उसीके तदनन्तर समयमें उस्कृष्ट अव. स्थान होता है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? सर्वविशुद्ध जा अप्रमत्तसंयत जीव अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित है, वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो उत्कृष्ट विशुद्धिसे प्रतिभन्न होकर साकार उपयोगका क्षय होनेसे तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागबन्ध करता है, वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है और उसीके तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। आयुकर्मका भंग ओघके समान है। ३२३. संयतासंयत जीवों में चार घातिकर्मीकी उत्कृष्ट वृद्धिकाभंग आभिनिबोधिकज्ञानी जीवोंके समान है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभन्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागका बन्ध करता है, वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । उसीके तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मकी उस्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर साकार जागृत सर्वविशुद्ध और संयमके अभिमुख हुआ जीव अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित है,वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है? अन्यतर जो तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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