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________________ भुजगारबंधे कालानुगमो १३७ खेतभंगो । सेसपदा आउ० सव्वपदा छच्चों । सासणे सत्तण्णं क० सव्वप० अट्ठबारह ० | आउ० सव्वप० अटुचों० ' । कालागुगमो ० २६८. कालानुगमेण दुवि० ओघे० आदे० | ओघे० सत्तण्णं क० अवत्त० जह० एग०, उक्क० संखेजस० । सेसपदा आउ० सव्वपदा सव्वद्धा । एवं ओघभंगो तिरिक्खोधं सव्वएइंदि० - पुढवि०० आउ० तेउ०- वाउ० तेसिं बादरअपज बादरपत्तेय० तस्सेव अप० वणफदि- णियोदा तेसिं बादर पज्जत्तापजत्त - सुहुम कायजोगि - ओरालि० ओरालिमि०कम्मइ० स ० - कोधादि ०४ - मदि० - सुद० - असंज - अचक्खु ० - तिण्णिले ०- भवसि ० - अन्मवसि० - मिच्छा० - असणि आहार० अणाहारगति 0. । २६६. रइएस सत्तण्णं क० भुज० अप्प० सव्वद्धा । अवट्टि० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखें । आउ० भुज० अप्प० जह० एग०, उक्क० पलिदो० असंखे० | अवट्ठि ० - अवत्त ० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखे० । एवं असंखेजरासीणं । सहस्त्रारकल्प के समान भंग है । शुक्ललेश्यावाले जीवों में सात कर्मों के अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है। शेष पदोंके तथा आयुकर्म के सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों में सात कर्मों के सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है | आयुकर्म के सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । कालानुगम २६८. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे सात "कर्मो वक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । शेष पदोंके और आयुकर्म के सब पदोंके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । इसी प्रकार ओघके समान सामान्य तिर्यच, सब एकेन्द्रिय, पृथिवीकायिक, जलकायिक, अंमिकायिक, वायुकायिक और इनके बादर तथा अपर्याप्त, बादर प्रत्येक वनस्पति तथा उनके अपर्याप्त, वनस्पतिकायिक, निगोद तथा इनके बादर तथा पर्याप्त और अपर्याप्त, सूक्ष्म, काययोगी, भौदारिककाययोगी औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचतुदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक जीवों के जानना चाहिये | २६६. नारकियोंमें सात कर्मों के भुजगार और अल्पतरपदके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । अवस्थित पदके बन्धक जीवों का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । आयुकर्म के भुजगार और अल्पतरपदके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । इसी प्रकार असंख्यात राशिवाली मार्गणाओं में भी काल जानना चाहिये । तथा इसी प्रकार संख्यात राशिवाली १ ता० आ० प्रत्योः अव० इति पाठः । १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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