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________________ भुजगारबंधे अंतराणुगमो १२६ २७८. पंचिं. तस०२ सत्तण्णं क. भुज०-अप्प० ओघं । अवहि-अवत्त० जह. ओघ, उक्क० कायहिदी । आउ० ओघं । णवरि अवढि० णाणा भंगो। २७६. पंचमण-पंचवचि० अढण्णं क० अवतः णत्थि अंतरं । सेसं जह० एग०, उक्क० अंतो० । कायजोगि० सत्तणं क० ओघं । अवत्त० णत्थि अंतरं। भाउ० एइंदियभंगो । ओरालि० सत्तण्णं क० मणजोगिभंगो। णवरि अवहि. जह० एग०, उक्क० बावीसं० सह० देसू० । आउ० तिणि प० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० सत्तवाससह० सादि० । ओरालियमि० अपज्जत्तभंगो। वेउन्वि० मणजोगिभंगो । वेउव्वियमि० आहार० मणजोगिभंगो। आहारमि० ओरालियमिस्स भंगो । णवरि आउ० अवत्त० पत्थि अंतरं । कम्मइ० अणाहार० सत्तण्णं क० भुज० अप्प० णत्थि अंतरं । अवहि० एय० । २८०. इत्थि०-पुरिस० सत्तण्णं क. भुज० अप्प० ओघं । अवढि० जह. एग०, उक्क० कायद्विदी० । आउ० अवट्ठिणाणाभंगो । भुज० अप्प० जह० एग०, अवत्त० जह• अंतो०, उक्क० पणवण्णं पलिदो० सादि० तेत्तीसं० सादि० । णस० अट्टण्णं क० २७८. पंचेन्द्रियद्विक और सद्विक जीवोंमें सात कर्मों के भुजगार और अल्पतरपदका भंग ओघके समान है। अवस्थित और अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर ओघके समान है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थिति प्रमाण है। आयुकर्मका भंग ओघके समान है । इतनी विशेषता है कि अवस्थित पदका भंग ज्ञानावरणके समान है। २७६. पाँचमनोयोगी और पाँच वचनयोगीजीवोंमें आठ कर्मों के प्रवक्तव्य पदकाअन्तरकाल नहीं है। शेष पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । काययोगी जीवोंमें सात कर्मोंका भंग आघके समान है। अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है। आयुकर्मका भंग एकेन्द्रियोंके समान है । औदारिककाययोगी जीवोंमें सात कर्मोंका भंग मनोयोगी जीवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम बाईस हजार वर्ष है । अायुकर्मके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक सात हजार वर्ष है। औदारिकमिश्रकाययोगी जीवों में अपर्याप्तकोंके समान भंग है। वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें मनोयोगी जीवोंके समान भंग है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और श्राहारककाययोगी जीवोंमें मनोयोगी जीवोंके समान भंग है। आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें औदारिकमिश्रकाययोगी जीवों के समान भंग है। इतनी विशेषता है कि आयुकमेके अवक्तव्यपदका अन्तरकाल नहीं है। कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें सात कर्मों के भुजगार और अल्पतर पदका अन्तरकाल नहीं है। अवस्थित पदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। २६०. स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवों में सात कर्मों के भुजगार और अल्पतरपदका भंग ओधके समान है। अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थिति प्रमाण है। आयुकमके अवस्थित पदका भंग ज्ञानावरणके समान है। भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और इनका उत्कृष्ट अन्तर साधिक पचपन पल्य और साधिक तेतीस सागर है । नपुंसकवेदी जीवोंमें आठ कर्मोंका भंग ओघके समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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