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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे २२३. सासणे घादि०४ उक० अणु० अट्ठ-बारह । वेद णामा०-गोद० उक्क० अट्ठ० । अणु० अट्ठ-बारह० । आउ० उक्क० खेत्त० । अणु० अट्ठ । सम्मामि० सत्तण्णं कम्माणं उक्क० अणुक्क० अट्ठ० ।
२२४. जहण्णए पगदं। दुवि०-ओघे० आदे०। ओघे० धादि०४-गोद० जह० लो० असं० । अज० सव्वलो० । वेद०-आउ०-णाम० जह. अज० सव्वलो। एवं ओघभंगो कायजोगि-णवंस०-कोधादि०४-मदि०-सुद०-असंज०-अचक्खुदं०-किण्णले०. भवसि०-मिच्छा०-आहारग त्ति ।
विशेषार्थ-पहले हम पंचेन्द्रियों में स्पर्शनका विचार कर आये हैं। उसे ध्यानमें रखकर यहाँ भी सब स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए । यहाँ वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक नीवोंका स्पर्शन विकल्प रूपसे लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण भी कहा है सो इसका कारण यह है कि स्वामित्वका विचार करते समय इन कर्मोकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्वामित्व दो प्रकारसे कहा है। अलः तदनुसार स्पर्शन भी दो प्रकारसे जानना चाहिए। जब चारों गतिके सर्वविशुद्ध संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवोंको उत्कृष्ट स्वामित्व दिया जाता है, तब कुछ कम आठ बटे चौदह राजू स्पर्शन प्राप्त होता है और जब द्रव्यसंयत मनुष्यको उत्कृष्ट स्वामित्व दिया जाता है, तब लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण स्वामित्व प्राप्त है। शेष कथन सुगम है।
२२३. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घाति कर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु
और कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयु कर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ-सासादनसम्यग्दृष्टियोंका. कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजू स्पर्शन कहा है । इनमें से कुछ कम बारह बटे चौदह राजु स्पर्शन वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवों के तथा आयुकर्मके बन्धक जीवोंके सम्भव नहीं है, क्योंकि मारणान्तिक समुद्घातके समय यह बन्ध नहीं होता। अतः यहाँ इस अपेक्षासे कुछ कम आठ बटे चौदह राजू स्पर्शन और शेष अपेक्षासे कुछ कम आठ बटे चौदह राजू तथा कुछ कम बारह बढे चौदह राजू स्पर्शन कहा है। मात्र आयु कर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान ही जानना चाहिए। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में न तो मारणान्तिक समुद्घात होता है और न ही आयुबन्ध होता है, अतः यहाँ सातों कर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंके कुछ कम आठ बटे चौदह राजू एकमात्र यही स्पर्शन कहा है :
२२४. जघन्यका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे चार घातिकर्म और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागके वन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वेदनीय, आयु और नामकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इस प्रकार ओघके समान काययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी कृष्णलेश्यावाले, भव्य, मिथ्यादृष्टि और आहारक जीवोंके जानना चाहिये।
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