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________________ फोसगपरूवणा E २२१. किण्ण०-णील० - काउ० घादि०४ उक्क० छ चत्तारि बेचोद० । सेसं खेत ० । उ० घादि०४ उक्क अणु० अट्ठ-णव० । वेद०-णामा० गोद० उक्क० खेत० । अणु० अट्ठ-णव० । आउ० उक्क० खेत्त० । अणु० अट्ठ० । एवं पम्म सुकाणं । णवरि अट्ठछ - चौ६० । २२२. अन्भव० - घादि०४ उक्क० अट्ठ-तेरह० । अणु० सव्वलो० । वेद०-णामा०गोद० उक० अट्ट० । अथवा लोगस्स असंखें । अणुक्क० सव्वलो० । आउ० उक० ० । अणु० सव्वलो० । • २२१. कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने क्रमसे कुछ कम छह बटे चौदह राजू, कुछ कम चार बटे चौदह राजू और कुछ कम दो बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष भंग क्षेत्र के समान है । पीतले श्यावाले जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया | वेदनीय नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभाग बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ वटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार पद्म और शुक्ल लेश्यावाले जीवों के जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनमें क्रमसे कुछ कम आठ बढे चौदह राजू और कुछ म छह बटे चौदह राजू स्पर्शन कहना चाहिये । विशेषार्थ- - चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंमें कृष्ण लेश्या वालोंके नीचे सातवीं पृथिवी तक कुछ कम छह बटे चौदह राजू, नील लेश्यावालोंके नीचे पाँचवीं पृथिवी तक कुछ कम चार बटे चौदह राजू और कापोत लेश्यावालोंके नीचे तीसरी पृथिवी तक कुछ कम दो बटे चौदह राजू प्रमाण स्पर्शन सम्भव है, इसलिए यह उक्त प्रमाण कहा है। पीतलेश्यावालोंके अतीत कालकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ वटे चौदह राजू कहा है। वह यहाँ चार घातिकर्मोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंके तथा वेदनीय, नाम और गोत्रकर्म के अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंके सम्भव है, इसलिए यह उक्त प्रमाण कहा है। परन्तु वेदनीय आदि तीन कर्मों के उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंके और आयुकर्म के अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंके कुछ कम नौ बटे चौदह राजू स्पर्शन सम्भव नहीं है, क्योंकि यह स्पर्शन इस लेश्या में मारणान्तिक समुद्घात और उपपाद पदके समय ही सम्भव है, इसलिए यह स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू कहा है । पद्मलेश्यावाले और शुक्ल लेश्यावाले जीवोंमें अतीत कालकी अपेक्षा क्रमसे कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम छह बटे चौदह राजू स्पर्शन होता है। आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंको छोड़कर और सब जीवों के यह स्पर्शन सम्भव होनेसे इनमें यह उक्त प्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है । २२२. अभव्य जीवोंमें चार कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट अनुभाग बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू अथवा लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्म के उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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