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________________ ६६ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे अणु ० सव्वलो० । सेसाणं उक्क० अणु० खैत्तभंगो । बादरपुढ० आउ० तेउ० -वाउ० सत्तणं कु० पुढविभंगो । आउ० उक्क० अणु० लो० असं० । बादरपुढवि० आउ० तेउ०वाउ० अपज० घादि०४ उक्क० अणुः सव्वलो० । वेद०-णामा-गोदा० उक्क० लो० असंखे ० ० । अणु० सव्वलो० । आउ० उक्क० अणु० लो० असं० । णवरि वाउ० जम्हि लोग असंखे० तम्हि लोग० संखे० । वफादि. णियोद० घादि०४ उक्क० अणु० सव्वलो० | सेसाणं उक्क० लोग० असंखे० । अणु० सव्वलो० । बादरवणप्फदि० - बादरवण० - बादरणियोद-पञ्जत्ताअपजत्ता० बादरविपत्तभंगो । बादरवणफदिपत्ते० बादरविभंग । सव्वसुदृमाणं सुहृमेइंदियभंगो । ० । २१५, ओरालि० घादि०४ उक्क० छच्चो६० ६० । अणु० सव्वलो० । सेसाणं खेत्तभंगो । ओरालियम अटुण्णं कम्माणं उक्क० खैत्तभंगो । अणु० सव्वलो० । कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने लोकके श्रसंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष कर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । बादर पृथिवीकायिक, वादर जलकायिक, वादर अग्निकायिक और बाहर वायुकायिक जीवों में सात कर्म के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन पृथिवीकायिक जीवोंके समान है। आयुकर्म के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त, बादर जलकायिक अपर्याप्त, बादर अग्निकायिक अपर्या और बाद वायुकायिक अपर्याप्त जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातर्वे भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इतनी विशेषता है कि जहाँ पर लोकका असंख्यातवाँ भाग प्रमाण क्षेत्र कहा है, वहाँ पर वायुकायिक जीवों में लोकका संख्यातवाँ भाग प्रमाण क्षेत्र कहना चाहिये । वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष कर्मोके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। बादर बनस्पतिकायिक, वादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त, बादर निगोद और इनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवों में बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त जीवोंके समान भंग है । बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर जीवोंमें वादर पृथिवीकायिक जीवोंके समान भंग है । सब सूक्ष्म जीवोंमें सूक्ष्म एकेन्द्रियों के समान भंग है । विशेषार्थ - पहले हम एकेन्द्रियों और उनके अवान्तर भेदों में स्पर्शनको घटित करके बतला ये हैं । उसे ध्यान में लेकर और इन पृथिवीकायिक आदि जीवोंकी अवान्तर विशेषता जानकर यह स्पर्शन ले आना चाहिए । २१५. औदारिक, काययोगी जीवोंमें चार घति कर्मोके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष कर्मोंका भंग क्षेत्रके समान है । औदारिक मिश्रकाययोगी जीवों में आठ कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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