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फोसणपरूवणा
सुहमाणं सत्तण्णं क० उक० अणु० सव्वलो० । आउ० उक्क० लो० असंखे० सव्वलोगो वा । अणु० सबलो।
२१३. पंचिंदि०-तस०२ धादि०४ उक्क० अट्ठ-तेरह। अणु० अट्ठ० सव्वलो। वेद०-णामा-गोदा० उक्क० खेत्तभंगो। अणु० अढ० सव्वलो० । आउ० उक्क० खेतः । अणु० अट्टचों । एवं पंचमण-पंचवचि० इत्थि०-पुरिस० विभंग चक्खुदं०-सणि त्ति ।
२१४. पुढवि०-आउ०-तेउ० वाउ० घादि०४ उक्क० लो० असंखे सबलो० ।
भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके संख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सब सूक्ष्म जीवोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनु भागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है तथा आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है तथा अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ-एकेन्द्रियोंमें वेदनीय और नाम कर्मका सर्वविशुद्ध वादर वायुकायिक पर्याप्त जीव भी उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करते हैं। अतः इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके संख्यातवें भाग प्रमाण कहा है। आयु कर्मका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध तत्प्रायोग्य अवस्थामें और गोत्र कर्मका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध पृथिवी, जल और प्रत्येक वनस्पति ये तीनों बादर पर्याप्त सर्व विशुद्धि अवस्थामें करते हैं। यतः इन जीवोंके ऐसी अवस्थामें स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागसे अधिक नहीं प्राप्त होता,अतः इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। बादर एकेन्द्रिय तथा उनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंमें जिस अवस्थामें सर्वलोक स्पर्शन होता है, उस अवस्थामें आयु कर्मका बन्ध सम्भव नहीं। अतः इनमें आयुकर्मके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके संख्यातवें भागप्रमाण कहा है । शेष कथन सुगम है।
२१३. पंचेन्द्रियद्विक और सद्विक जीवोंमें चार धातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कछ कम आठ बटे चौदह राज और कुछ कम तेरह बटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयु कर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, धिभंगज्ञानी, चक्षुदर्शनी और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिये।
विशेषार्थ-इन पञ्चेन्द्रिय आदि चारों प्रकारके जीवोंमें यद्यपि मरणान्तिक समुद्घातके समय भी चार घाति कर्मोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्भव है, पर ये जीव जब अपने उत्कृष्ट बन्धके योग्य जीवोंमें ही मारणान्तिक समुद्घात कर रहे हों, तभी यह सम्भव है। इसलिए इनमें चार घाति कर्माके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सर्वलोक न कहकर कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू कहा है। इनमें आयु कर्मका बन्ध मरणान्तिक समुद्घातके समय नहीं होता, इसलिए इनमें इसके अनुत्कृष्ठ अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ घटे चौदह राजू कहा है। यहाँ अन्य जितनी मार्गणाएँ गिनाई हैं, उनमें यह स्पर्शन सम्भव होनेसे उनके कथनको इन पंचेन्द्रियादि चारी मार्गणाओंके स्पशेनके समान कहा है। शेष कथन
___ २१४. पृथिवीकायिक, जल कायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंमें घार घाति
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